घेरण्ड संहिता
शाोधनं दृढता चैव स्थैर्यं धैर्य च लाघवम्।
प्रत्यक्ष च निर्लिप्तं च घटस्य सप्तसाधनम् ।। घे.सं. 9
शोधन, दृढ़ता, स्थिरता, धीरता, लघुता, प्रत्यक्ष तथा निर्लिप्तता । इन सातों के लिए उयायरूप मे शरीर शोधन के सात साधनो को कहा गया है।
षटकार्मणा शोधनं च आसनेन् भवेद्दृढम्।
मुद्रया स्थिरता चैव प्रत्याहारेण धीरता।।
प्राणायामाँल्लाघवं च ध्यानात्प्रत्क्षमात्मान:।
समाधिना निर्लिप्तिं च मुक्तिरेव न संशय।। घे.सं. 10-11
अर्थात् षटकर्मों से शरीर का शोधन, आसन से दृढ़ता. मुद्रा से स्थिरता, प्रत्याहार से धीरता, प्राणायाम से लाघवं (हल्कापन), ध्यान से आत्मसाक्षात्कार तथा समाधि से निर्लिप्तभाव प्राप्त करके मुक्ति अवश्य ही हो जाएगी, इसमे संदेह नहीं है।
1. घेरण्ड संहिता में वर्णित षट्कर्म-
धौति, वस्ति, नेति, नौलि, त्राटक व कपालभांति ये षटकर्म ( शरीर शुद्धि के लिये छः कर्म) घेरण्ड संहिता में महर्षि घेरण्ड ने बताये है किन्तु इनके भेद होने के कारण इनकी संख्या बढ जाती है। जैसे-
(1) धौति- धौति के चार प्रकार कहे हैं। 1. अन्तधौति, 2. दन्तधौति, 3. हृदधौति तथा 4. मूलशोधन ।
अन्तधौति- ये चार प्रकार की बताय़ी गई हैं- (i) वातसारधौति, (ii) वारिसारधौति, (iii) अग्निसारधौति तथा (iv) बहिष्कृतधौति ।
दन्तधौति- इसके भी चार प्रकार हैं- (i) दन्तमूलधौति, (ii) जिह्वामूलधौति, (iii) कर्णरन्ध्र तथा (iv) कपालरन्ध्रधौति ।
हृदधौति- ये तीन प्रकार की हैं- (i) दण्डधौति, (ii) वमनधौति, (iii) वस्त्रधौति।
मूलशोधन- इस का कोई भेद नहीं है।
(2) वस्ति- इसके दो भेद (i) जलवस्ति तथा (ii) स्थलवस्ति है ।
(3) नेति- नेति के रूप मे सूत्रनेति का वर्णन किया गया है ।
(4) नौलि - इसका कोई प्रकार महर्षि घेरण्ड ने नहीं बताया है ।
(5) त्राटक- इसका भी कोई प्रकार महर्षि घेरण्ड ने नहीं बताया है ।
(6) कपालभाँति- कपालभाँति के तीन प्रकार महर्षि घेरण्ड ने बताए गये है- (i) वातक्रम, (ii) व्युत्क्रम व (iii) शीतक्रम कपालभाँति ।
2. घेरण्ड संहिता में वर्णित आसन-
महर्षि घेरण्ड ने 32 आसनो का वर्णन किया है। जिनके नाम इस प्रकार है ।
1.सिद्धासन, 2.पद्मासन, 3. भद्रासन, 4. मुक्तासत्न, 5.वज्रासन, 6. स्वस्तिकासन, 7. सिंहासन, 8. गोमुखासन, 9. वीरासन, 10.धनुरासन, 11. शवासन, 12.गुप्तासत्न, 13. मत्स्यासऩ, 14. मत्स्येन्द्रासन, 15. गोरक्षासन, 16. पश्चिमोत्तान आसन, 17. उत्कटासन, 18. संकटासन, 19. मयूरासन, 20. कुक्कुटासन, 21. कूर्मासन, 22. उत्तानकूर्मासन, 23. मण्डूकासऩ, 24. उत्तानमण्डूकासन, 25. वृक्षासन, 26. गरुडासन, 27. योगासन, 28. वृषभासन, 29. शलभासन, 30. मकरासन, 31. उष्ट्रासन, 32. भुजंगासन ।
3. घेरण्ड संहिता में वर्णित मुद्रा व
घेरण्ड संहिता में वर्णित बन्ध-
घेरण्डसंहिता मे महर्षि घेरण्ड ने 25 मुद्राओं व बन्धो का वर्णन किया है। जिनके नाम इस प्रकार है ।
1. मूलबंध, 2. जालन्धरबंध, 3. उड्डीयानबंध, 4. महाबंध, 5. महामुद्रा, 6. नभोमुद्रा, 7. खेचरीमुद्रा, 8. महावेध मुद्रा, 9. विपरीतकरणी मुद्रा,
10.योनिमुद्रा, 11. वज्रोली मुद्रा, 12. शक्तिचालिनी मुद्रा, 13. तडागी मुद्रा,
14. मण्डुकीमुद्रा, 15. शाम्भबी मुद्रा, 16. अश्विनी मुद्रा, 17. पाशिनी मुद्रा, 18. काकी
मुद्रा, 19. मातंगिनी मुद्रा, 20. भुजंगिनी मुद्रा, 21. पार्थिवी धारणा, 22. आम्भसी धारणा, 23. आग्नेयी धारणा, 24. वायवीय धारणा, 25. आकाशी धारणा,
4. घेरण्ड संहिता में वर्णित प्रत्याहार-
घेरण्ड संहिता मे कहा गया है
यतो यतो निश्चरति मनश्चंचलमस्थिरम्।
ततस्ततो नियम्यैतद् आत्मन्येव वशं नयेत्। । घे. सं. 4 / 2
चंचल मन को नियन्त्रित करने के लिए इन्द्रियो को नियन्त्रित करना परम आवश्यक है। इन्द्रियों का नियन्त्रण ही प्रत्याहार है।
5. घेरण्ड संहिता में वर्णित प्राणायाम (कुम्भक)-
'प्राण के नियन्त्रण से मन नियन्त्रित होता है। अत: प्रायायाम की आवश्यकता बताई गई है। हठयोग प्रदीपिका की भांति प्राणायामों की संख्या इसमे भी आठ बताई गईं है किन्तु दोनो में थोडा अन्तर है। घेरण्डसंहिता मे कहा गया है-
सहित: सूर्यभेदश्च उज्जायी शीतली तथा।
भस्त्रिका भ्रामरी मूर्च्छा केवली चाष्टकुम्भका।। घे.सं0 5 / 46
सहित, सूर्य भेदन, उज्जायी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्च्छा तथा केवली ये आठ कुम्भक (प्राणायाम) कहे गए हैं। प्राणायामों के अभ्यास से शरीर में हल्कापन आता है। (विस्तृत वर्णन)
6. घेरण्ड संहिता में वर्णित ध्यान-
घेरण्डसंहिता मे महर्षि घेरण्ड ने ध्यान के तीन प्रकार बताए गए हैं-
स्थूलं ज्योतिस्तथा सूक्ष्म ध्यानस्थ त्रिविधं विंदु: ।
स्थूलं मूर्तिमयं प्रोक्तं ज्योतिस्तेजोमयं तथा।
सूक्ष्म बिन्दुमयं ब्रह्म कुण्डली पर देवता। । घे.सं. 6 / 1
(क) स्थूल ध्यान- हृदय या सहस्त्रार चक़्र से गुरु या इष्ट देव के ध्यान को स्थूल ध्यान कहा गया है ।
(ख) ज्योतिर्ध्यान- मूलाधार से आत्मा का निवास स्थान है। वहॉ तेजोमय ब्रहा का ध्यान किया जाता है। भूमध्य में प्रकाश पुंज के रूप मे प्रणव की स्थिति मानी गई है। वहां भी ध्यान करना ज्योतिर्ध्यान कहलाता है। इसी को प्रणव ध्यान भी कहते हैं ।
(ग) सूक्ष्म ध्यान- शाम्भवी मुद्रा में कुण्डलिनी शक्ति के ध्यान को सूक्ष्म ध्यान कहा गया है ।
7. घेरण्ड संहिता में वर्णित समाधि-
घेरण्डसंहिता मेंं महर्षि घेरण्ड ने समाधि के छः भेद कहे हैं-
ध्यान योग समाधि- शाम्भबी मुद्रा से यह सिध्द होती है ।
नाद योग समाधि- भ्रामरी प्राणायाम के अभ्यास से सिद्ध होती है ।
रसानन्द योग समाधि- खेचरी मुद्रा के आभ्यास से सिध्द होती है ।
लयसिद्धि योग समाधि- यह योनि मुद्रा से सिद्ध होती है ।
भक्तियोग समाधि- ईश्वर के प्रति अत्नन्यश्रद्धा व अनन्य प्रेम से यह समाधि सिध्द होती है ।
राजयोग समाधि- मन के नियन्त्रण से सिध्द होती है ।
इस प्रकार साधनभूत सप्तांग योग का वर्णन करके घेरण्ड ऋषि ने योग के उद्देश्य मुक्ति के लक्ष्य को प्रस्तुत किया है ।
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