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Showing posts from November, 2020

नाड़ी - मानव शरीर में वर्णित नाड़ी

नाड़ी-     (Theory of the nadis in yoga) भारतीय चिन्तन में सत्य की खोज, मानव कल्याण और मोक्ष की प्राप्ति मुख्य लक्ष्य रहा है। मानव जीवन में ही व्यक्ति योग साधना कर मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। योग साधना का आधार मानव शरीर है। योगिक दृष्टि से मानव शरीर में नाड़ी, चक्र तथा कुण्डलिनी शक्ति योग साधना का आधार है। प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि मुनियों ने अपने ज्ञान द्वारा प्राणशक्ति का उत्थान किया तथा वे प्राणशक्ति को जाग्रत कर चेतना को विकसित किया करते थे। आज मानव ने अणु को भी तोड़कर परमाणु ऊर्जा हासिल कर ली है। ठीक इसी तरह अगर वह चाहे तो अपने भीतर छिपी ऊर्जा के विशाल भण्डार को जाग्रत कर अपने जीवन को उत्कृष्ट कर सकता है। हमारे ऋषि मुनि प्राचीन काल से ही यह कार्य यौगिक तकनीकों से किया करते थे, और ऊर्जा का उत्पादन बाह्य साधनों से न करके अपने शरीर और मन के भीतर ही किया करते थे।  जिस प्रकार ऊर्जा प्राप्त करने के लिए जल और वाष्प ऊर्जा केन्द्रों की प्रणाली व्यवस्थित की जाती है ऊपर से जल को गिराकर उसके दवाब के फलस्वरूप नीचे टरबाइन घूमती है, उससे उत्पन्न ताप की सहायता से विधुत निर्माण कर ऊर्जा को संग

घेरण्ड संहिता में वर्णित षट्कर्म

1. धौति  2. वस्ति घेरण्ड संहिता में वर्णित वस्ति का फल सहित वर्णन- वस्ति का अर्थ बड़ी आंत से होता है वस्ति क्रिया के अर्न्तगत बड़ी आंत को साफ किया जाता है इसलिए ये वस्ति क्रिया कहलाती है। महर्षि घेरण्ड ने वस्ति के दो भेद बताये है- (क) जल वस्ति (ख) स्थल वस्ति (क) जल वस्ति- इसका अभ्यास जल में बैठकर किया जाता है। इसलिए इसे जल वस्ति कहते है। नाभिमग्नजले प्रायुन्यस्तनालोत्कटासन:।  आकुंचन प्रसारं च जल वस्तिं रामाचरेत्।।  प्रमेहं च उदावर्त क्रूरवायुं निवारयते।  भवेत्रवच्छन्ददेहश्च कामदेवसमो भेवत्।। घे0सं0 अर्थात, जल में नाभिपर्यन्त बैठकर उत्कट आसन लगाये और गुहा देश का आकुंचन प्रसारण करें यह जल वस्ति है। यह जल वस्ति कर्म प्रमेह, क्रूर वायु का निवारण कर शरीर को कामदेव के समान सुन्दर बना देता है।   लाभ- आंतों के रोग एवं बवासीर के लिए लाभकारी अभ्यास है। इसके अभ्यास से शरीर में स्थित दूषित वायु से मुक्ति मिलती है। सूखे एक्जीमा में भी लाभ पहुंचाने वाली क्रिया है। आन्तरिक अंगों को स्वस्थ एवं मजबूत बनाती है।   सावधानियाँ- इसका अभ्यास टब या टंकी में बैठकर न करे क्योंकि इस क्रिया में विषाक्त पदार्थ