योग आसनों का वर्गीकरण (Classification of Yogaasanas)
आसनों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए इन्हें तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है
(1) ध्यानात्मक आसन- ये वें आसन है जिनमें बैठकर पूजा पाठ, ध्यान आदि आध्यात्मिक क्रियायें की जाती है। इन आसनों में पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन, सुखासन, वज्रासन आदि प्रमुख है।
(2) व्यायामात्मक आसन- ये वे आसन हैं जिनके अभ्यास से शरीर का व्यायाम तथा संवर्धन होता है। इसीलिए इनको शरीर संवर्धनात्मक आसन भी कहा जाता है। शारीरिक स्वास्थ्य के संरक्षण तथा रोगों की चिकित्सा में भी इन आसनों का महत्व है। इन आसनों में सूर्य नमस्कार, ताडासन, हस्तोत्तानासन, त्रिकोणासन, कटिचक्रासन आदि प्रमुख है।
(3) विश्रामात्मक आसन- शारीरिक व मानसिक थकान को दूर करने के लिए जिन आसनों का अभ्यास किया जाता है, उन्हें विश्रामात्मक आसन कहा जाता है। इन आसनों के अन्तर्गत शवासन, मकरासन, शशांकासन, बालासन आदि प्रमुख है। इनके अभ्यास से शारीरिक थकान दूर होकर साधक को नवीन स्फूर्ति प्राप्त होती है। व्यायामात्मक आसनों के द्वारा थकान उत्पन्न होने पर विश्रामात्मक आसनों का अभ्यास थकान को दूर करके ताजगी भर देता है।
अभ्यास की दृष्टि से आसनों को प्रमुख रूप से चार भागों में बांटा जा सकता हैं।
(A) चित लेटकर किये जाने वाले आसन, (B) पेट के बल लेटकर किये जाने वाले आसन, (C) बैठकर किये जाने वाले आसन तथा (D) खड़े होकर किये जाने वाले आसन।
इनके अतिरिक्त शीर्षासन समुदाय के विपरीत स्थिति वाले आसनों का एक अन्य विभाग भी किया जा सकता है।
योग आसनों के सिद्धान्त (Principles of Yogaasanas)
आसन योगाभ्यास के महत्वपूर्ण अंग हैं। इसलिए इन्हें करने के कुछ विशेष नियम हैं। नियम के अनुसार करने पर ही आसनों से अपेक्षित लाभ प्राप्त होता है। भगवान् श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं ।
युक्ताहारविहारस्य युक्त चेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।। ( 6 /17)
अर्थात यह दुःखों का नाश करने वाला योग उसी का सिद्ध होता है। जिसके आहार, विहार युक्त हो एवं नित्य कर्मों में युक्तिपूर्वक चेष्टा हो तथा जिसका सोना और जागना भी युक्त हो। कहने का तात्पर्य यह है कि नियमपूर्वक किये जाने पर ही योग सिद्ध होता है। इसी प्रकार आसन करते समय कुछ आवश्यक सिद्धान्तों पर ध्यान देना भी आवश्यक है। जिनमें से कुछ इस प्रकार है
1. योगासन शुद्ध एवं पवित्र स्थान पर ही करने चाहिएं। जहां योगासन किये जायें वहां पर धूल, धुआं, दुर्गन्ध आदि नहीं होने चाहिए।
2. आसन सदैव खाली पेट करने चाहिए। यदि भोजन करने के बाद करने ही तो न्यूनतम लगभग चार घण्टे पश्चात ही आसन करने चाहिए।
3. योगासनों का अभ्यास प्रातःकाल करना ही श्रेयस्कर है क्योंकि उस समय वातावरण शान्त एवं शुद्ध होता है। सायंकाल को भी अभ्यास किया जा सकता है।
4. आसनों का अभ्यास कभी भी शीघ्रता से नहीं करना चाहिए। बल्कि धीरे धीरे लयबद्ध तरीके से ही अभ्यास करना चाहिए।
5. कठिन रोगों से पीड़ित या जिनकी शल्य क्रिया हुई हो तो तुरन्त आसन नहीं करने चाहिए। गर्भवती महिलाओं भी तीन माह के बाद आसनों का अभ्यास नहीं करना चाहिए। रजस्वला होने पर भी आसन नहीं करने चाहिए। प्रसव के तीन माह पश्चात ही आसन करने चाहिए।
6. प्रारम्भ में सरल आसन करने चाहिए। फिर धीरे धीरे कठिन आसनों का अभ्यास करना चाहिए।
7. आसन करते समय पीछे की ओर झुकने वाली स्थिति में जायें तो श्वास लेते हुए जाना चाहिए और जब आगे की ओर झूुकें तो श्वास बहार निकालते हुए आना चाहिए।
8. आसन सदैव समभाव से करने चाहिए। अर्थात यदि एक आसन सामने झुकने वाला किया है तो उसके बाद पीछे झुकने वाला आसन करना चाहिए। यदि बाँयें झुकने वाला आसन किया है तो उसके पश्चात् दांयें झुकने वाला आसन करना चाहिए।
9. आसन करते समय शरीर से निकलने वाले स्वेद (पसीने) को पोंछना नहीं चाहिए वरन् उसे हाथों से मलकर सुखना चाहिए।
10. आसन करने के पश्चात् शवासन आदि के द्वारा पूर्ण विश्राम करना चाहिए जिससे शारीरिक थकान दूर हो सके।
11. आसन करने के तुरन्त बाद स्नान अथवा भोजन नहीं करना चाहिए बल्कि न्यूनतम आधे घंटे के पश्चात ही स्नान अथवा भोजन करना चाहिए।
जिस प्रकार आसन करते समय कुछ सिद्धान्तों का पालन किया जाता है। उसी प्रकार आसन करने से पूर्व कुछ तैयारी की आवश्यकता भी होती है। जिसका वर्णन इस प्रकार है
1. आसन करने के लिए शुद्ध पवित्र और समतल स्थान का चयन करना चाहिए।
2. आसन के लिए दरी बिछाकर उसके ऊपर कम्बल या मोटा कालीन बिछाना चाहिए।
3. आसन से पूर्व शौच आदि क्रियाओं से निवृत्त हो जाना चाहिए।
4. आसन करने के लिए शरीर पर कम से कम वस्त्र पहनने चाहिएँ तथा वस्त्र ढीले होने चाहिए। सर्दियों में कुर्ता पायजामा पहना जा सकता है।
5. आसन करने से पूर्व आसनों की विधि का ज्ञान होना आवश्यक है। किसी योग्य गुरु द्वारा सीखकर ही योगासन करने चाहिएँ।
उपर्युक्त इन सिद्धान्तों का पालन करते हुए पूर्व तैयारी के साथ किये गये योगासन ही शरीर को स्वस्थ तथा साधना के लिए उपयुक्त बनाते हैं।
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