अग्नि तत्व का शरीर पर प्रभाव व महत्व :-
Effect and importance of fire element on body - फलों के द्वारा अग्नि तत्व विशेष रूप से हमें प्राप्त होता है। फलों में जल तत्व की भी भरपूर मात्रा होती है। फल सूर्य की गरमी में पकते हैं जब हम धूप लेते हैं या सूर्य को गरमी से पके हुए फल खाते हैं तो शरीर के अन्दर अग्नि तत्व का समावेश होता है। फल भी दो प्रकार के होते हैं
(अ) रसदार- यह शरीर को शुद्ध करने में अधिक सहायक होते हैं तथा सुपाच्य होते हैं।
(ब) गूदेदार- इनमें पोषक तत्व अपेक्षाकृत अधिक होते हैं। ये अधिक गरिष्ठ माने जाते हैं।
दोनों ही प्रकार के फल पृथ्वी और जल तत्व वाले भोज्य पदार्थों की अपेक्षा अधिक सुपाच्य होते हैं। इन्हें बिना पकाये कच्चा ही खाना चाहिए जैसे-खीरा, ककड़ी, गाजर, टमाटर इत्यादि।
वायु तत्व के बाद अग्नि तत्व का आगमन होता है, जो पंच महाभूत का एक अंग है। इसके अभाव में प्राणी, पशु पक्षी एवं वनस्पति वर्ग आदि का जीवन असम्भव है। क्योंकि इसके अभाव में जीवन को उर्जा, उचित शक्ति आदि का मिलना असम्भव है। इस तत्व के अभाव में पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति और पृथ्वी की उर्वरक शक्ति नहीं बढ़ सकती। संसार के सभी प्राणियों का अस्तित्व ही अग्नि पर टिका हुआ है।
मनुष्य का ओज व तेज वृक्षों में हरियाली एवं पक्षियों में चहचहाहट तथा पशु का टहलना सारी नदियाँ आदि सभी सूर्य से प्रास तत्व अग्नि के कारण हो पाता है। सूर्य में रोगों के निवारण का एक महत्वपूर्ण गुण है। यह हमारे ऋषि मुनि भी मानते थे। सूर्य की रश्मियों से हमें विटामिन डी प्राप्त होता है जो कि हमारी हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए बहुत ही अनिवार्य है। इन रश्मियों से हमें उर्जा, शक्ति व स्फूर्ति भी प्राप्त होती है यह रोगाणुओं को नष्ट करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। यही नहीं यह हमारे शरीर से विजातीय द्रवोँ का निष्कासन कर रोगाणुओं और कीटाणुओं से हमारे शरीर को मुक्त रखती है।
सूर्य सेवन से वात, पित्त एवं कफ से उत्पन्न रोगो को दूर किया जा सकता है। सूर्थ और इसके महत्व को जानकर तथा समझकर आज भी प्रायः सनातन धर्म में सूर्य की उपासना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि प्रातः काल के सूर्य रश्मियों में बौद्धिक शक्ति बढाने की क्षमता होती है। सूर्य का प्रकाश जीवनी शक्ति में वृद्धि करता है तथा इसके अभाव में रक्ताभाव हड्डियो की कमजोरी, त्वचा रूखी, कड़ी व मुरझाई हुई दिखाई देती है जबकि सूर्य की किरणों का सेवन करने वालो की त्वचा सतेज, चिकनी स्वस्थ एवं सुन्दर होती है तथा उन्हें कभी भी सूखा रोग नहीं होता अर्थात यह कहना गलत नहींं होगा कि सूर्य का प्रकाश सभी रोगों का नाश करने वाला है।
सूर्य सेवन से वात, पित्त एवं कफ से उत्पन्न रोगो को दूर किया जा सकता है। सूर्थ और इसके महत्व को जानकर तथा समझकर आज भी प्रायः सनातन धर्म में सूर्य की उपासना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि प्रातः काल के सूर्य रश्मियों में बौद्धिक शक्ति बढाने की क्षमता होती है। सूर्य का प्रकाश जीवनी शक्ति में वृद्धि करता है तथा इसके अभाव में रक्ताभाव हड्डियो की कमजोरी, त्वचा रूखी, कड़ी व मुरझाई हुई दिखाई देती है जबकि सूर्य की किरणों का सेवन करने वालो की त्वचा सतेज, चिकनी स्वस्थ एवं सुन्दर होती है तथा उन्हें कभी भी सूखा रोग नहीं होता अर्थात यह कहना गलत नहींं होगा कि सूर्य का प्रकाश सभी रोगों का नाश करने वाला है।
सूर्य की रश्मि में पसीना निकालने, मोटापा घटाने की शक्ति होती है। सूर्य रश्मियाँ पाचन प्रणाली को ठीक करती है। खाद्यो, फल, सब्जी, अनाज में जितनी सूर्य रश्मियाँ सतृप्त होती हैं उनमें उतना ही पोषण तत्व, प्राकृतिक लवण, एवं विटामिन पूर्ण एवं अधिक पाया जाता है।
सूर्य किरण हमारी बाह्य और अन्तः ग्रंथियों पर प्रभाव डालकर सन्तुलन पैदा करती है। अतः हमें सूर्य किरणो से प्राप्त अग्नि तत्व की पूर्ति करने के लिए उसका नियमित सेवन करने चाहिए।
आज अग्नि तत्व की प्राप्ति के लिए कई साधन व उपचार की पद्धतियाँ प्रयोग में लाई जा रही हैं। आज जिन रोगों का कारण अग्नि तत्व की कमी है उन्हें दूर करने के लिए विभिन्न उपचार विधियों को प्रयोग किया जाता है जैस-सूर्य किरण चिकित्सा- इसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं -
सूर्य की किरणो को रंगीन शीशो सेे गुजारकर काम मे लाना- इस काम केे लिये विविध रंगो के शीशे लेेेकर उनमें स्लेट की तरह उनमे चौखटे लगवा लेने चाहिये जब शरीर के किसी रोगी भाग पर किसी रंग की सूर्य किरण का प्रकाश डालना हो तो उसी रंग का शीशा लेकर धूप में बैठकर शरीर के रोगी भाग पर शीशे से सूर्य की उस रंग की किरण पड़ने देना चाहिये सूर्य की रंगीन रश्मियो का स्नान हमेशा नंगे बदन करना अधिक लाभप्रद होता है। सूर्य-किरणें से समूचे शरीर को नहलाना हो तो इसके लिये ऐसा कमरा चुनना चाहिये जिसमें सूर्य प्रकाश खूब आता हो तथा जिसकी खिडकी में रंगीन शीशा आवश्यकतानुसार लगाने या निकालने की व्यवस्था हो जिस रंग का सूर्य प्रकाश शरीर के लिये आयश्यक हो उसे सूर्य के सामने वाली खिड़की में लगाकर बाकि सभी को बन्द कर देना चाहिये ताकि आवश्यक रंग के अलावा अन्य कोई रंग की किरण रोगी पर ना पडे।
सूर्य की रंगीन किरणों का जल मे सम्पुटित करके काम मे लाना- सूर्य की सातो रंगीन किरणों लाल, नारंगी, पीली हरी, आसमानी, नीली एवं बैगनी किरणों को उन्ही रंगो की बोतल के माध्यम से जल में सम्पुटित कर चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है बोतलो के रंग सूर्ख और शुद्ध होने पर परिणाम प्रभावकारी होते है यदि रंगीन बोतल या उस रंग की बोतल ना मिल पाये तो सफेद बोतल पर आवश्यक रंग का सिलोफिन कागज लपेटकर उसमे जल को तैयार कर प्रयोग किया जा सकता है।
सूर्य किरण हमारी बाह्य और अन्तः ग्रंथियों पर प्रभाव डालकर सन्तुलन पैदा करती है। अतः हमें सूर्य किरणो से प्राप्त अग्नि तत्व की पूर्ति करने के लिए उसका नियमित सेवन करने चाहिए।
आज अग्नि तत्व की प्राप्ति के लिए कई साधन व उपचार की पद्धतियाँ प्रयोग में लाई जा रही हैं। आज जिन रोगों का कारण अग्नि तत्व की कमी है उन्हें दूर करने के लिए विभिन्न उपचार विधियों को प्रयोग किया जाता है जैस-सूर्य किरण चिकित्सा- इसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं -
सूर्य की किरणो को रंगीन शीशो सेे गुजारकर काम मे लाना- इस काम केे लिये विविध रंगो के शीशे लेेेकर उनमें स्लेट की तरह उनमे चौखटे लगवा लेने चाहिये जब शरीर के किसी रोगी भाग पर किसी रंग की सूर्य किरण का प्रकाश डालना हो तो उसी रंग का शीशा लेकर धूप में बैठकर शरीर के रोगी भाग पर शीशे से सूर्य की उस रंग की किरण पड़ने देना चाहिये सूर्य की रंगीन रश्मियो का स्नान हमेशा नंगे बदन करना अधिक लाभप्रद होता है। सूर्य-किरणें से समूचे शरीर को नहलाना हो तो इसके लिये ऐसा कमरा चुनना चाहिये जिसमें सूर्य प्रकाश खूब आता हो तथा जिसकी खिडकी में रंगीन शीशा आवश्यकतानुसार लगाने या निकालने की व्यवस्था हो जिस रंग का सूर्य प्रकाश शरीर के लिये आयश्यक हो उसे सूर्य के सामने वाली खिड़की में लगाकर बाकि सभी को बन्द कर देना चाहिये ताकि आवश्यक रंग के अलावा अन्य कोई रंग की किरण रोगी पर ना पडे।
सूर्य की रंगीन किरणों का जल मे सम्पुटित करके काम मे लाना- सूर्य की सातो रंगीन किरणों लाल, नारंगी, पीली हरी, आसमानी, नीली एवं बैगनी किरणों को उन्ही रंगो की बोतल के माध्यम से जल में सम्पुटित कर चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है बोतलो के रंग सूर्ख और शुद्ध होने पर परिणाम प्रभावकारी होते है यदि रंगीन बोतल या उस रंग की बोतल ना मिल पाये तो सफेद बोतल पर आवश्यक रंग का सिलोफिन कागज लपेटकर उसमे जल को तैयार कर प्रयोग किया जा सकता है।
सर्वप्रथम जल तैयार करने के लिये बोतल को खुब अच्छी तरह साफ कर शुद्ध जल से भर 1/4 भाग खाली छोड देना चाहिये बोतल को उसी रंग के ढक्कन या कार्क से बन्द करने के पश्चात एक लकडी की मेज पर ऐसे स्थान पर रखना चाहिये जहां सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक उस पर लगातार धूप पड़ती रहे शाम 5 बजे बोतल के खाली भाग में भाप की बूदें दिखायी देंगी जिससे यह स्पष्ट होगा की पानी मे औषधी गुण आ गया है और उसे प्रयोग किया जा सकता है सूर्य तप्त जल को पृथ्वी पर नहीं रखना चाहिये वरना उसका सब गुण पृथ्वी मे मिल जाता है। यह जल 6 से 8 घण्टे मे दवा बन जाता है विभिन्न रंग की बोतल को तैयार करने के लिये उन्हे धूप मे रखते समय इतनी दूर दूर रखना चाहिये की उनकी छाया दूसरी बोतल पर ना पडे तैयार जल को सफेद बोतल मे रखने पर 24 घण्टे तक प्रयोग किया जा सकता है बल्कि उसी रंग की बोतल जिसमे जल तैयार हुआ है उसमे रखने पर 72 घण्टे तक प्रयोग किया जा सकता है।
सूर्य किरण चिकित्सा में फल और सब्जियो का प्रभाव भी देखा जाता है फल और सब्जियाँ अपने अन्दर सूर्य की किरणों को एकत्र करती रहती है इसलिये इन्हें प्राकृतिक रुप से खाने मे हमे अधिक पोषक तत्व मिलते है हरे रंग की तरकारी व फल गुर्दे चक्षु और चर्मरोग में तथा लाल रंग की सब्जियो का प्रभाव गर्म होता है। बेल मे पीला, नीला दोनो रंगो का प्रयोग होने पर वह आँतों के लिये सर्वोत्तम माना जाता है सर्दी खाँसी और कफ जनित रोग मे गर्म प्रकृति के पदार्थ देने चाहिये।
सूर्य की रंगीन किरणों को वायु के माध्यम से भक्षण भी किया जाता है जिसमें रंगीन खाली बोतल को खूब कडी डॉट लगाकर उसी प्रकार धूप मे रखा जाता है जिस प्रकार बोतल मे जल भरकर उसे तैयार किया जाता है नियम वही रहेगे। इसमे बोतल को लकडी पर सूर्य के प्रकाश मे दिन मे 12 बजे से 1 बजे तक रखने पर बोतल मे बन्द हवा औषधि गुणो युक्त कि जाती है तैयार हवा का नासिका या मुहँ द्वारा रोगी के श्वास के साथ खिचंवाकर उसके रोग को दूर करने के प्रयोग मे लाया जाता है।
सूर्य की रंगीन किरणों का तेल बनाकर प्रयोग करना- जिस प्रकार जल और हवा को धूूप मे रंगीन बोतलो मे बन्द कर रखने पर तप्त किया जाता है उसी प्रकार ही तेल भी भावित किया जाता है तेल को सूर्य किरणों से भावित करने के लिये उसे केवल 8 धण्टे ही सूर्य प्रकाश मे नही रखा जाता बल्कि गर्मियों मे 30-40 दिन और सर्दियों में 60 दिनो तक प्रतिदिन 6 घन्टे सूर्य के प्रकाश में रखकर तेेेल तैयार किया जाता है। इस प्रकार तिल, गोला, जैतुन, सरसों आदि तेलों तथा गिलसरीन को भी भावित कर विभिन्न रोगों मेे प्रयोग किया जाता है।
सूर्य की रंगीन किरणों को मिश्री या दुग्ध शर्करा आदि में भावित कर काम मे लाना भी प्राकृतिक चिकित्सा की एक प्रक्रिया है। मिश्री, शक्कर को सूर्य तप्त कर उन दिनों में विशेष रुप से प्रयोग किया जाता है जिन दिनों सूर्य का प्रकाश नही निकलता। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार शरीर मे जिस रंग के अभाव के कारण रोग उत्पन्न हुआ है उसी रंग से तप्त जल में भीगे कपड़े की पटटी प्रयोग में करने पर साधारण जल की पटटी से दोगुना लाभ मिलता है। रंगीन किरण तप्त जल से सनी मिट्टी की पटटी का प्रयोग करके रोगो को दूर करना-मिट्टी की पटटी बनाने के लिये रंगीन तप्त जल में तैयार मिट्टी प्रयोग कि जाती है जिससे शीघ्र और अधिक लाभ होता है गर्म मिट्टी के प्रयोग आदि। कई प्रकार के गर्म प्रयोगों के दरा अग्नि तत्व की शरीर में पर्याप्त मात्रा में पूर्ति कर बड़े-बड़े रोगों को दूर किया जा सकता है।
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