Skip to main content

NTA UGC NET Yoga previous year question

UGC NET Yoga previous year question for practice (Set-5)

नोट:- इस प्रश्नपत्र में (25) बहुसंकल्पीय प्रश्न है। प्रत्येक प्रश्न के दो (2) अंक है। सभी प्रश्न अनिवार्य

1. निम्नलिखित में से कौन सा युग्म सही ढंग से सुमेलित है? नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करें:
सूची- i           सूची - ii
i.
करुणा       (A) सुख
ii.
मुदिता      (B) अपुण्य
iii.
मैत्री        (C) पुण्य
iv
उपेक्षा       (D) दुख
कूटः
     (i) (ii) (iii) (iv)
1. (A) (B) (D) (C)
2. (B) (A) (C) (D)
3. (D) (C) (A) (B)
4. (C) (D) (B) (A)     

2.
सूची i को सूची ii के साथ सुमेलित करें और नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करते हुए सही विकल्प चुनें:
सूची- i                    सूची - ii
i.
शुक्ल                     (A) पुण्य और पाप
ii.
शुक्ल कृष्ण           (B) पुण्य
iii.
कृष्ण                   (C) पुण्य और पाप से रहित
iv.
अशुक्ल कृष्ण       (D) पाप
कूटः
     (i) (ii) (iii) (iv)
1. (A) (B) (C) (D)
2. (B) (A) (D) (C)
3. (C) (B) (D) (A)
4. (D) (C) (B) (A)  

3. निम्नलिखित में से कौन सा युग्म सही ढंग से सुमेलित नहीं है?
सूची - i                    सूची - ii
1. आसन                  स्थिरता
2. प्राणायाम             लाघव
3. प्रत्याहार              धैर्य
4. ध्यान                   प्रत्यक्ष

4. सूची - i को सूची - ii पर के साथ सुमेलित करें और नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करते हुए सही विकल्प चुनें:
    सूची - i                          सूची  - ii
i. सेरिब्रम              (A) स्थिति और स्थिति संबंधी क्रियाओं का नियमन करता है।   
ii. सेरिबेलम          (B) शरीर के तापमान, भूख और प्यास का नियमन करता है।
iii. मेड्युला           (C) भाव, श्रवण और दृष्टि को ऑब्लॉन्गाय नियंत्रित करताहै।
iv. हाइपोथेलेमस   (D) श्वसन और रक्त परिसंचरण तंत्र को नियंत्रित करता है।
कूटः
     (i) (ii) (iii) (iv)
1. (C) (A) (B) (D)
2. (A) (B) (D) (C)
3. (C) (A) (D) (B)
4. (B) (C) (D) (A)

5. सूची - i को सूची -ii  के साथ सुमेलित करें और नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करते हुए सही विकल्प चुनें:
       सूची - i                                          सूची - ii
i. वात का असंतुलन                        (A) 20 नानात्मज विकार
ii. पित्त का असंतुलन                     (B) 80 नानात्मज विकार
iii. कफ का असंतुलन                      (C) 40 नानात्मज विकार
iv.किन्‍हीं दो दूषित दोषों
को संयोग   (D) द्वन्दज विकार
कूटः
     (i) (ii) (iii) (iv)
1. (A) (C) (B) (D)
2. (A) (D) (C) (B)
3. (B) (C) (A) (D)
4. (B) (A) (C) (D) 

6. भगवद्गीता के किस श्लोक में “समत्वं योग उच्यते'' का वर्णन है?
(1) 3/48    (2) 2/50   (3) 3/50   (4) ) 2/48

7. सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं :
(1) गौतम   (2) कपिल    (3) कणाद   (4) जैमिनी

8. पतंजलि के अनुसार, योगी का कर्म किस प्रकार का है?
(1) शुक्ल   (2) कृष्ण   (3) अशुक्लाकृष्ण    (4) शुक्लकृष्ण

9. कठोपनिषद्‌ में कितनी प्रधान नाड़ियों का वर्णन किया गया है?
(1) 100   (2) 101   (3) 110     (4) 111

10.निम्नलिखित में से किस आसन का वर्णन शिव संहिता में नहीं किया गया है ?
(1) पद्मासन   (2) उग्रासन  (3) स्वस्तिकासन   (4) भद्रासन

11. हठ रत्नावली के अनुसार चित्तवृत्तिनिरोध कहलाता है :
(1) योग   (2) राज योग   (3) हठ योग  (4) महा योग

12. किसी वयस्क के लिये प्रोटीन की संस्तुत दैनिक मात्रा है :
(1) 2 ग्राम/कि.ग्रा. शरीर भार      (2) 1 ग्राम/कि.ग्रा. शरीर भार
(3) 0.5ग्राम/कि.ग्रा. शरीर भार  (4) 1.5 ग्राम/कि.ग्रा. शरीर भार

13. जीवित कोशिका की कौन-सी संरचना ''आत्महत्या की थैली'' कहलाती है?
(1) सेंट्रोसोम        (2) राइबोसोम
(3) लाइसोसोम    (4) गोल्गी ऐपरेटस

14. पंचकोश की अवधारणा का किसमें उल्लेख किया गया है?
(1) छान्दोग्य उपनिषद्‌  (2) तैत्तिरीय उपनिषद्‌
(3) माण्डूक्य उपनिषद्‌   (4) मुण्डक उपनिषद्‌

15. मनोविज्ञान किसका वैज्ञानिक अध्ययन है?
 (1) आत्मा का
(2) मन का
(3) मानव व्यवहार और मानसिक प्रक्रिया का
(4) चेतना का

16. आयुर्वेद के अनुसार जीवन के तीन स्तम्भ हैं :
(1) वात, पित्त, कफ़  (2) सत्व, रजसू, तमस्‌
(3) धर्म, अर्थ, काम    (4) आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य

17.  योग शिक्षा के उद्देश्य का केन्द्र है :
 (1) केवल ज्ञान                   (2) केवल शक्ति
(3) केवल सामाजिक संबंध  (4)सर्वांगीण विकास

18. कपाल भाति के लिये कौन-सा कथन सही है?  
(1) प्रश्वास सक्रिय है।    (2) निःश्वास निष्क्रिय है।
(3) प्रश्वास निष्क्रिय है। (4) प्रश्वास और निःश्वास सक्रिय हैं।

19. महर्षि पतंजलि के अनुसार, समाधि सिद्धि की विधि है :
(a) प्राणायाम          (b) ईश्वर प्रणिधान
(c) अभ्यास वैराग्य (d) प्रत्याहार
दिये गये कूट से सही संयोजन चुनें :
कूट :
(1) (a) और (d) सही हैं।    (2) (b) और (c) सही हैं।
(3) (b) और (d) सही हैं।    (4) (c) और (d) सही हैं।

20. निम्नलिखित में से किन मौसमों में नये योगभ्यासियों को योगाभ्यास शुरू करना चाहिये ?
(a) हेमन्त         (b) शरद  
(c) शिशिर         (d) वसंत
कूट के अनुसार सही संयोजन चुनें :
कूट :
(1) (c) और (d) सही हैं।    (2) (a) और (b) सही हैं।
(3) (a) और (c) सही हैं।    (4) (b) और (d) सही हैं।

21. हठ रत्नावली में वर्णित कुंभकों के प्रकार हैं :
(a) भस्त्रिका, भ्रामरी   (b) केवल, भुजंगीकरण
(c) मूर्च्छा, प्लावनी    (d) सीत्कारी, शीतली
कूट के अनुसार सही संयोजन चुनें :
कूट :
(1) (a), (b) और (c) सही हैं।    (2) (b), (c)और (d) सही हैं।
(3) (a), (b) और (d) सही हैं।    (4) (a) , (c)और (d) सही हैं।

22. निम्नलिखित में से कौन-से विटामिन वसा घुल्य हैं?
(a) विटामिन A    (b) विटामिन B
(c) विटामिन C    (d) विटामिन D
कूट के अनुसार सही संयोजन चुनें :
कूट :  
(1) (b) और (c)     (2) (a) और (d)  
(3) (a) और (b)     (4) (b) और (d) 

23. कफ प्रकृति वाले व्यवितयों के लिए आहार के निम्नलिखित में से कौनसे प्रकार लाभदायक हैं?
(a) स्निग्ध               (b) लघु
(c) रूक्ष                    (d) गुरू

कूट के अनुसार सही संयोजन चुनें :
कूट :
(1) (a) और (d) सही हैं।    (2) (b) और (c) सही हैं।
(3) (a) और (d) सही हैं।    (4) (c) और (d) सही हैं।

24. हठ प्रदीपिका के अनुसार योगाभ्यासी के लिए कौन से खाद्य पदार्थ अपथ्य हैं?
(a) दही        (b) दूध
(c) तक्र        (d) नवनीत
कूट के अनुसार सही संयोजन चुनें :
कूट : 
(1) (a) और (c) सही हैं।    (2) (b) और (c) सही हैं।
(3) (b) और (d) सही हैं।    (4) (c) और (d) सही हैं।

25. नेत्र विकारों के लिए कौन सी शुद्धिकरण विधियाँ लाभदायक नहीं हैं?
(a) त्राटक     (b) बस्ति
(c) नेति       (d) नौलि
कूट के अनुसार सही संयोजन चुनें :
कूट :
(1) (a) और (d) सही हैं।    (2) (b) और (c) सही हैं।
(3) (b) और (d) सही हैं।    (4) (c) और (d) सही हैं। 

Answer- 1- (3), 2- (2), 3- (1), 4- (3), 5- (3), 6- (4), 7- (2), 8- (3), 9- (2), 10- (4), 11- (4), 12- (2), 13- (3), 14- (2), 15- (3), 16- (1), 17- (4), 18- (4), 19- (2), 20- (4), 21- (3), 22- (2), 23- (2), 24- (1), 25- (3)

 To be continuous......  

Yoga Book in Hindi

Yoga Books in English

Yoga Book for BA, MA, Phd

Gherand Samhita yoga book

Hatha Yoga Pradipika Hindi Book

Patanjali Yoga Sutra Hindi

Shri mad bhagwat geeta book hindi

UGC NET Yoga Book Hindi

UGC NET Paper 2 Yoga Book English

UGC NET Paper 1 Book

QCI Yoga Book 

Yoga book for class 12 cbse

Yoga Books for kids


Yoga Mat   Yoga suit  Yoga Bar   Yoga kit


UGC NET Yoga multiple choice Questions -Answer For practice (Set- 1)

 

Comments

Popular posts from this blog

सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति सामान्य परिचय

प्रथम उपदेश- पिण्ड उत्पति विचार सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति अध्याय - 2 (पिण्ड विचार) सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार नौ चक्रो के नाम 1. ब्रहमचक्र - मूलाधार मे स्थित है, कामनाओं की पूर्ति होती हैं। 2. स्वाधिष्ठान चक्र - इससे हम चीजो को आकर्षित कर सकते है। 3. नाभी चक्र - सिद्धि की प्राप्ति होती है। 4. अनाहत चक्र - हृदय में स्थित होता है। 5. कण्ठचक्र - विशुद्धि-संकल्प पूर्ति, आवाज मधुर होती है। 6. तालुचक्र -  घटिका में, जिह्वा के मूल भाग में,  लय सिद्धि प्राप्त होती है। 7. भ्रुचक्र -     आज्ञा चक्र - वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है। 8. निर्वाणचक्र - ब्रहमरन्ध्र, सहस्त्रार चक्र, मोक्ष प्राप्ति 9. आकाश चक्र - सहस्त्रारचक्र के ऊपर,  भय- द्वेष की समाप्ति होती है। सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार सोहल आधार (1) पादांगुष्ठ (2) मूलाधार (3) गुदाद्वार (4) मेद् आधार (5) उड्डियान आधार (6) नाभी आधार (7) हृदयाधार (8) कण्ठाधार (9) घटिकाधार (10) तालु आधार (11) जिह्वा आधार सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार तीन लक्ष्य (Aim) 1. अन्तर लक्ष्य (Internal) - मेद्‌ - लिंग से उपर  एवं न...

Yoga MCQ Questions Answers in Hindi

 Yoga multiple choice questions in Hindi for UGC NET JRF Yoga, QCI Yoga, YCB Exam नोट :- इस प्रश्नपत्र में (25) बहुसंकल्पीय प्रश्न है। प्रत्येक प्रश्न के दो (2) अंक है। सभी प्रश्न अनिवार्य ।   1. किस उपनिषद्‌ में ओंकार के चार चरणों का उल्लेख किया गया है? (1) प्रश्नोपनिषद्‌         (2) मुण्डकोपनिषद्‌ (3) माण्डूक्योपनिषद्‌  (4) कठोपनिषद्‌ 2 योग वासिष्ठ में निम्नलिखित में से किस पर बल दिया गया है? (1) ज्ञान योग  (2) मंत्र योग  (3) राजयोग  (4) भक्ति योग 3. पुरुष और प्रकृति निम्नलिखित में से किस दर्शन की दो मुख्य अवधारणाएं हैं ? (1) वेदांत           (2) सांख्य (3) पूर्व मीमांसा (4) वैशेषिक 4. निम्नांकित में से कौन-सी नाड़ी दस मुख्य नाडियों में शामिल नहीं है? (1) अलम्बुषा  (2) कुहू  (3) कूर्म  (4) शंखिनी 5. योगवासिष्ठानुसार निम्नलिखित में से क्या ज्ञानभूमिका के अन्तर्गत नहीं आता है? (1) शुभेच्छा (2) विचारणा (3) सद्भावना (4) तनुमानसा 6. प्रश्नो...

आसन का अर्थ एवं परिभाषायें, आसनो के उद्देश्य

आसन का अर्थ आसन शब्द के अनेक अर्थ है जैसे  बैठने का ढंग, शरीर के अंगों की एक विशेष स्थिति, ठहर जाना, शत्रु के विरुद्ध किसी स्थान पर डटे रहना, हाथी के शरीर का अगला भाग, घोड़े का कन्धा, आसन अर्थात जिसके ऊपर बैठा जाता है। संस्कृत व्याकरंण के अनुसार आसन शब्द अस धातु से बना है जिसके दो अर्थ होते है। 1. बैठने का स्थान : जैसे दरी, मृग छाल, कालीन, चादर  2. शारीरिक स्थिति : अर्थात शरीर के अंगों की स्थिति  आसन की परिभाषा हम जिस स्थिति में रहते है वह आसन उसी नाम से जाना जाता है। जैसे मुर्गे की स्थिति को कुक्कुटासन, मयूर की स्थिति को मयूरासन। आसनों को विभिन्न ग्रन्थों में अलग अलग तरीके से परिभाषित किया है। महर्षि पतंजलि के अनुसार आसन की परिभाषा-   महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र के साधन पाद में आसन को परिभाषित करते हुए कहा है। 'स्थिरसुखमासनम्' योगसूत्र 2/46  अर्थात स्थिरता पूर्वक रहकर जिसमें सुख की अनुभूति हो वह आसन है। उक्त परिभाषा का अगर विवेचन करे तो हम कह सकते है शरीर को बिना हिलाए, डुलाए अथवा चित्त में किसी प्रकार का उद्वेग हुए बिना चिरकाल तक निश्चल होकर एक ही स्थिति में सु...

चित्त | चित्तभूमि | चित्तवृत्ति

 चित्त  चित्त शब्द की व्युत्पत्ति 'चिति संज्ञाने' धातु से हुई है। ज्ञान की अनुभूति के साधन को चित्त कहा जाता है। जीवात्मा को सुख दुःख के भोग हेतु यह शरीर प्राप्त हुआ है। मनुष्य द्वारा जो भी अच्छा या बुरा कर्म किया जाता है, या सुख दुःख का भोग किया जाता है, वह इस शरीर के माध्यम से ही सम्भव है। कहा भी गया  है 'शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्' अर्थात प्रत्येक कार्य को करने का साधन यह शरीर ही है। इस शरीर में कर्म करने के लिये दो प्रकार के साधन हैं, जिन्हें बाह्यकरण व अन्तःकरण के नाम से जाना जाता है। बाह्यकरण के अन्तर्गत हमारी 5 ज्ञानेन्द्रियां एवं 5 कर्मेन्द्रियां आती हैं। जिनका व्यापार बाहर की ओर अर्थात संसार की ओर होता है। बाह्य विषयों के साथ इन्द्रियों के सम्पर्क से अन्तर स्थित आत्मा को जिन साधनों से ज्ञान - अज्ञान या सुख - दुःख की अनुभूति होती है, उन साधनों को अन्तःकरण के नाम से जाना जाता है। यही अन्तःकरण चित्त के अर्थ में लिया जाता है। योग दर्शन में मन, बुद्धि, अहंकार इन तीनों के सम्मिलित रूप को चित्त के नाम से प्रदर्शित किया गया है। परन्तु वेदान्त दर्शन अन्तःकरण चतुष्टय की...

चित्त विक्षेप | योगान्तराय

चित्त विक्षेपों को ही योगान्तराय ' कहते है जो चित्त को विक्षिप्त करके उसकी एकाग्रता को नष्ट कर देते हैं उन्हें योगान्तराय अथवा योग के विध्न कहा जाता।  'योगस्य अन्तः मध्ये आयान्ति ते अन्तरायाः'।  ये योग के मध्य में आते हैं इसलिये इन्हें योगान्तराय कहा जाता है। विघ्नों से व्यथित होकर योग साधक साधना को बीच में ही छोड़कर चल देते हैं। विध्न आयें ही नहीं अथवा यदि आ जायें तो उनको सहने की शक्ति चित्त में आ जाये, ऐसी दया ईश्वर ही कर सकता है। यह तो सम्भव नहीं कि विध्न न आयें। “श्रेयांसि बहुविध्नानि' शुभकार्यों में विध्न आया ही करते हैं। उनसे टकराने का साहस योगसाधक में होना चाहिए। ईश्वर की अनुकम्पा से यह सम्भव होता है।  व्याधिस्त्यानसंशयप्रमादालस्याविरतिभ्रान्तिदर्शनालब्धभूमिकत्वानवस्थितत्वानि चित्तविक्षेपास्तेऽन्तरायाः (योगसूत्र - 1/30) योगसूत्र के अनुसार चित्त विक्षेपों  या अन्तरायों की संख्या नौ हैं- व्याधि, स्त्यान, संशय, प्रमाद, आलस्य, अविरति, भ्रान्तिदर्शन, अलब्धभूमिकत्व और अनवस्थितत्व। उक्त नौ अन्तराय ही चित्त को विक्षिप्त करते हैं। अतः ये योगविरोधी हैं इन्हें योग के मल...

कठोपनिषद

कठोपनिषद (Kathopanishad) - यह उपनिषद कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा के अन्तर्गत आता है। इसमें दो अध्याय हैं जिनमें 3-3 वल्लियाँ हैं। पद्यात्मक भाषा शैली में है। मुख्य विषय- योग की परिभाषा, नचिकेता - यम के बीच संवाद, आत्मा की प्रकृति, आत्मा का बोध, कठोपनिषद में योग की परिभाषा :- प्राण, मन व इन्दियों का एक हो जाना, एकाग्रावस्था को प्राप्त कर लेना, बाह्य विषयों से विमुख होकर इन्द्रियों का मन में और मन का आत्मा मे लग जाना, प्राण का निश्चल हो जाना योग है। इन्द्रियों की स्थिर धारणा अवस्था ही योग है। इन्द्रियों की चंचलता को समाप्त कर उन्हें स्थिर करना ही योग है। कठोपनिषद में कहा गया है। “स्थिराम इन्द्रिय धारणाम्‌” .  नचिकेता-यम के बीच संवाद (कहानी) - नचिकेता पुत्र वाजश्रवा एक बार वाजश्रवा किसी को गाय दान दे रहे थे, वो गाय बिना दूध वाली थी, तब नचिकेता ( वाजश्रवा के पुत्र ) ने टोका कि दान में तो अपनी प्रिय वस्तु देते हैं आप ये बिना दूध देने वाली गाय क्यो दान में दे रहे है। वाद विवाद में नचिकेता ने कहा आप मुझे किसे दान में देगे, तब पिता वाजश्रवा को गुस्सा आया और उसने नचिकेता को कहा कि तुम ...

हठयोग प्रदीपिका में वर्णित प्राणायाम

हठयोग प्रदीपिका में प्राणायाम को कुम्भक कहा है, स्वामी स्वात्माराम जी ने प्राणायामों का वर्णन करते हुए कहा है - सूर्यभेदनमुज्जायी सीत्कारी शीतल्री तथा।  भस्त्रिका भ्रामरी मूर्च्छा प्लाविनीत्यष्टकुंम्भका:।। (हठयोगप्रदीपिका- 2/44) अर्थात् - सूर्यभेदन, उज्जायी, सीत्कारी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्छा और प्लाविनी में आठ प्रकार के कुम्भक (प्राणायाम) है। इनका वर्णन ऩिम्न प्रकार है 1. सूर्यभेदी प्राणायाम - हठयोग प्रदीपिका में सूर्यभेदन या सूर्यभेदी प्राणायाम का वर्णन इस प्रकार किया गया है - आसने सुखदे योगी बदध्वा चैवासनं ततः।  दक्षनाड्या समाकृष्य बहिस्थं पवन शनै:।।  आकेशादानखाग्राच्च निरोधावधि क्रुंभयेत। ततः शनैः सव्य नाड्या रेचयेत् पवन शनै:।। (ह.प्र. 2/48/49) अर्थात- पवित्र और समतल स्थान में उपयुक्त आसन बिछाकर उसके ऊपर पद्मासन, स्वस्तिकासन आदि किसी आसन में सुखपूर्वक मेरुदण्ड, गर्दन और सिर को सीधा रखते हुए बैठेै। फिर दाहिने नासारन्ध्र अर्थात पिंगला नाडी से शनैः शनैः पूरक करें। आभ्यन्तर कुम्भक करें। कुम्भक के समय मूलबन्ध व जालन्धरबन्ध लगा कर रखें।  यथा शक्ति कुम्भक के प...

हठयोग का अर्थ , परिभाषा, उद्देश्य

  हठयोग का अर्थ भारतीय चिन्तन में योग मोक्ष प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण साधन रहा है, योग की विविध परम्पराओं (ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग, हठयोग) इत्यादि का अन्तिम लक्ष्य भी मोक्ष (समाधि) की प्राप्ति ही है। हठयोग के साधनों के माध्यम से वर्तमान में व्यक्ति स्वास्थ्य लाभ तो करता ही है पर इसके आध्यात्मिक लाभ भी निश्चित रूप से व्यक्ति को मिलते है।  हठयोग- नाम से यह प्रतीत होता है कि यह क्रिया हठ- पूर्वक की जाने वाली है। परन्तु ऐसा नही है अगर हठयोग की क्रिया एक उचित मार्गदर्शन में की जाये तो साधक सहजतापूर्वक इसे कर सकता है। इसके विपरित अगर व्यक्ति बिना मार्गदर्शन के करता है तो इस साधना के विपरित परिणाम भी दिखते है। वास्तव में यह सच है कि हठयोग की क्रियाये कठिन कही जा सकती है जिसके लिए निरन्तरता और दृठता आवश्यक है प्रारम्भ में साधक हठयोग की क्रिया के अभ्यास को देखकर जल्दी करने को तैयार नहीं होता इसलिए एक सहनशील, परिश्रमी और तपस्वी व्यक्ति ही इस साधना को कर सकता है।  संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ में हठयोग शब्द को दो अक्षरों में विभाजित किया है।  1. ह -अर्थात हकार  2. ठ -अर्थ...

बंध एवं मुद्रा का अर्थ , परिभाषा, उद्देश्य

  मुद्रा का अर्थ एवं परिभाषा  'मोदन्ते हृष्यन्ति यया सा मुद्रा यन्त्रिता सुवर्णादि धातुमया वा'   अर्थात्‌ जिसके द्वारा सभी व्यक्ति प्रसन्‍न होते हैं वह मुद्रा है जैसे सुवर्णादि बहुमूल्य धातुएं प्राप्त करके व्यक्ति प्रसन्‍नता का अनुभव अवश्य करता है।  'मुद हर्ष' धातु में “रक्‌ प्रत्यय लगाकर मुद्रा शब्दं॑ की निष्पत्ति होती है जिसका अर्थ प्रसन्‍नता देने वाली स्थिति है। धन या रुपये के अर्थ में “मुद्रा' शब्द का प्रयोग भी इसी आशय से किया गया है। कोष में मुद्रा' शब्द के अनेक अर्थ मिलते हैं। जैसे मोहर, छाप, अंगूठी, चिन्ह, पदक, रुपया, रहस्य, अंगों की विशिष्ट स्थिति (हाथ या मुख की मुद्रा)] नृत्य की मुद्रा (स्थिति) आदि।  यौगिक सन्दर्भ में मुद्रा शब्द को 'रहस्य' तथा “अंगों की विशिष्ट स्थिति' के अर्थ में लिया जा सकता है। कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए जिस विधि का प्रयोग किया जाता है, वह रहस्यमयी ही है। व गोपनीय होने के कारण सार्वजनिक नहीं की जाने वाली विधि है। अतः रहस्य अर्थ उचित है। आसन व प्राणायाम के साथ बंधों का प्रयोग करके विशिष्ट स्थिति में बैठकर 'म...

योग आसनों का वर्गीकरण एवं योग आसनों के सिद्धान्त

योग आसनों का वर्गीकरण (Classification of Yogaasanas) आसनों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए इन्हें तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है (1) ध्यानात्मक आसन- ये वें आसन है जिनमें बैठकर पूजा पाठ, ध्यान आदि आध्यात्मिक क्रियायें की जाती है। इन आसनों में पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन, सुखासन, वज्रासन आदि प्रमुख है। (2) व्यायामात्मक आसन- ये वे आसन हैं जिनके अभ्यास से शरीर का व्यायाम तथा संवर्धन होता है। इसीलिए इनको शरीर संवर्धनात्मक आसन भी कहा जाता है। शारीरिक स्वास्थ्य के संरक्षण तथा रोगों की चिकित्सा में भी इन आसनों का महत्व है। इन आसनों में सूर्य नमस्कार, ताडासन,  हस्तोत्तानासन, त्रिकोणासन, कटिचक्रासन आदि प्रमुख है। (3) विश्रामात्मक आसन- शारीरिक व मानसिक थकान को दूर करने के लिए जिन आसनों का अभ्यास किया जाता है, उन्हें विश्रामात्मक आसन कहा जाता है। इन आसनों के अन्तर्गत शवासन, मकरासन, शशांकासन, बालासन आदि प्रमुख है। इनके अभ्यास से शारीरिक थकान दूर होकर साधक को नवीन स्फूर्ति प्राप्त होती है। व्यायामात्मक आसनों के द्वारा थकान उत्पन्न होने पर विश्रामात्मक आसनों का अभ्यास थकान को दूर करके त...