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UGC NET Yoga Question Answers

UGC NET Yoga MCQ with Answers For practice (Set- 2)

नोट:- इस प्रश्नपत्र में (25) बहुसंकल्पीय प्रश्न है। प्रत्येक प्रश्न के दो (2) अंक है। सभी प्रश्न अनिवार्य ।

1. नीचे दिए गए दो कथनों में से एक को अभिकथन (A) और दूसरे को तर्क (R) की संज्ञा दी गई है। नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए:

अभिकथन (A) : पश्चिमोतानासन गृध्रसी में निषिद्ध हैं।
तर्क (R) : पश्चिमोत्तानासन आगे की ओर झुकने वाले आसनों का एक प्रकार है। गृध्रसी में आगे झुकने वाले
सभी प्रकार के आसन निषिद्ध होने चाहिए।
उपरोक्त दो कथनों के संदर्भ में निम्मलिखित में से कौनसा सही है?
1. (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (R), (A) की सही व्याख्या है।
2. (A) और (R) दोनों सही है, लेकिन (R), (A) की सही व्याख्या नहीं है।
3. (A) सही है, लेकिन (R) गलत है।
4. (A) गलत है, लेकिन (R) सही है।

2. नीचे दिए गए दो कथनों में से एक अभिकथन (A) और दूसरे को तर्क (R) की संज्ञा दी गई है। नीचे दिए एक विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए:

अभिकथन (A) : शवासन और ध्यान का अभ्यास व्यक्ति की स्मरण-शक्ति में सुधार लाते हैं।
तर्क (R) : स्मरण शक्ति सूचना के संकेतन, संचय और पुनःप्राप्ति की प्रक्रिया है। योग के विश्रामदायक अभ्यास स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए मस्तिष्क के इन प्रकार्यों में सुधार लाते हैं।
उपरोक्त दो कथनों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा सही है?
1. (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (R), (A) की सही व्याख्या है।
2. (A) और (R) दोनों सही हैं, लेकिन (R), (A) की सही व्याख्या नहीं है।
3. (A) सही है, लेकिन (R) गलत हैं
4. (A) गलत है, लेकिन (R) सही है।

3. वेदों के निम्नलिखित उप-खण्डों को उस क्रम में व्यवस्थित कीजिए, जिसमें वे दृष्टिगोचर हुए थे। उत्तर देने के लिए नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करें;

i. उपनिषद्‌                  ii. आरण्यक
iii. ब्राह्मण                iv. संहिता
कूटः
1. i, ii, iii, iv            2. ii, iv, iii, i
3.  iii, i, ii, iv           4. iv, iii, ii, i

4. भगवदगीता के अनुसार निम्नलिखित तत्त्वों को क्रम में व्यवस्थित करें:

i. क्रोध                  ii. इन्द्रिय विषयों में लिप्तता
iii. आसक्ति        iv. काम
 सही उत्तर देने के लिए निम्नलिखित कूटों का उपयोग करें
कूटः .
1. i, iii, iv, ii           2. iii, ii, i, iv
3. ii, iii, iv, i           4. iv, ii, iii, i

5. निम्नलिखित तत्त्वों को उनके उद्भव के अनुसार क्रम में व्यवस्थित कीजिए:

i. पृथ्वी                   ii. वायु  
iii. आकाश             iv. जल  
v. अग्नि
सही उत्तर देने के लिए निम्नलिखित कूटों का उपयोग करें-
कूटः
1. ii, iv, i, iii, v      2. iii, ii,  v, iv, i
3. iv, iii, v, ii, i      4.v, iii, i, iv, ii  

6. शरीर में स्थित निम्नलिखित पंचकोशो को उचित क्रम में व्यवस्थित करें। उत्तर देने के लिए नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करें:
i. मनोमय कोश            ii. प्राणमय कोश
iii. आनंदमय कोश       iv. अन्नमय कोश
v. विज्ञानमय कोश
कूटः
1.ii, iv, i, iii, v             2. ii, iv, iii, i, v
3, iv, ii, i, iii, v            4.iv, ii, i, v, iii

7. सूची-1 को सूची - 2 के साथ सुमेलित करें और नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करते हुए सही विकल्प चुने:
   सूची-1                     सूची-2
i . शरीर                   A. सारथी
ii .आत्मा                 B. लगाम
iii. मन                    C. अश्व
iv. इन्द्रियाँ               D. रथ 

 कूट-

       i    ii    iii    iv
1.    A   C    B    D
2.    D   B    C    A
3.    D   A    B    C
4.    B   D    C    A

 8. सूची-1 को सूची-2 के साथ सुमेलित करें और नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करते हुए सही विकल्प चुने:
    सूची-1                     सूची- 2
i. क्लेश                A. अनवस्थितत्व
ii.चित्तवृत्ति        B.अंगमेजयत्व                       
iii.सहभुव             C. विकल्प    
 iv.अन्तराय          D. अस्मिता                      
कूटः

        i    ii    iii    iv
1.    C   D    B    A
2.    D   C    A    B
3.    D   C    B    A
4.    C   D    A    B

9. सूची-1 को सूची-2 के साथ सुमेलित करें और नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करते हुए सही विकल्प चुने:
       सूची-1                      सूची-2
i.चपटी अस्थियाँ        A.बाँहे और टाँगें
ii.लंबी अस्थियाँ         B.कलाइयाँ
iii.छोटी अस्थियाँ       C.उरोस्थि और अंसफलक
iv.टेढ़ी-मेढ़ी अस्थियाँ  D.कशरुकाएँ
कूटः 

        i    ii    iii    iv
1.    D   A    B    C
2.    C   A    B    D
3.    C   A    D    B
4.    A   B    C    D

10.  “आर्य अष्टांगिक मार्ग” किसकी देन हैं?
1. कपिल  2. बुद्ध 3. पतंजलि 4. वशिष्ठ

11. निम्नलिखित में से किसको मुख्य दस उपनिषदों में सम्मिलित नहीं किया गया हैं?
1. केनोपनिषद्‌             2. मुण्डकोपनिषद्‌
3. श्वेताश्वतरोपनिषद्‌. 4. बृहदारण्यकोपनिषद्‌

12.  निम्नलिखित में से कौन ' क्षेत्र' और क्षेत्रज्ञ को इंगित करता है?
1. प्रकृति एवं पुरुष
2. आत्मा एवं ईश्वर
3. माया एवं ब्रह्म
4. जगतू एवं जीव .

13. केनोपनिषद्‌ के अनुसार यक्ष कौन हैं?
1. इन्द्र  2. ब्रह्म  3. अग्नि  4. वायु .

14. 'उदगीथ' क्या है?
1. प्राण 2. चंद्रमा 3. सूर्य  4. प्रणव

15. भगवदगीता के अनुसार निम्नलिखित में से कौन शांति की स्थिति को प्राप्त नहीं करता है?
1. इच्छाविहीन व्यक्ति
2. अहंकारविहीन व्यक्ति
3: कर्मयोगी
4. विद्वान्‌

16. अध्यात्म प्रसाद किसका परिणाम है ?
1. विवेक ख्याति             2. निर्विचार समापत्ति
3. असम्प्रज्ञातस समाधि 4. धर्ममेघ समाधि

17. सांख्यशास्त्र के अनुसार प्रकृति तत्व के घटक हैं:?
1. वात, कफ और पित्त
2. सत्व, रजस्‌ और तमस्‌
3. मनस्‌ बुद्धि और अहंकार
4. वाक्‌, पाणि और पायु 

18. सिद्ध सिद्धान्त पद्धति में योग के कितने अंग बताए गए हैं?
1. 07     2. 08      3. 04       4. 03

19. कुण्डलिनी के स्वरूपत: कितने प्रकार सिद्ध सिद्धान्त पद्धति में वर्णित हैं?
1. 04     2. 03      3. 02       4. 06

20. शिव संहिता के अनुसार सफलता के तत्त्वों में निम्नलिखित में से किसको सम्मिलित नहीं किया जाता है?
1. दृढ़ विश्वास    2. इन्द्रियों पर नियंत्रण
3. यज्ञ                4. मिताहार

21.'सिद्ध सिद्धांत पद्धति' में “पिण्ड-विचार ' के अंतर्गत कितने आधारों का वर्णन किया गया है?
1. 05      2. 09      3. 16       4. 07

22. हठ रत्नावली में कितनी शोधन क्रियाएँ वर्णित की गई हैं?
1. 07      2. 08      3. 06       4. 04

23. निम्नलिखित में से कौन सा हार्मोन शरीर में 'फाइट और-फ्लाइट रेसपोन्स” में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है?
1. एड्रिनेलिन 2. नॉरएड्रेनेलिन 3. वृद्धि हार्मोन 4. ग्लूकैगॉन

24. “सरकेडियन रिदम्स' के अध्ययन को कहा जाता है:
1. एन्डोक्रिनॉलॉजी      2. क्रॉनोबायोलॉजी
3. माइक्रोबायोलॉजी    4. सेल बायोलॉजी

25. सूची- 1 को सूची- 2 के साथ सुमेलित करें और नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करते हुए सही विकल्प चुने:
      सूची- 1                          सूची- 2.
i. स्त्यान                   A. समाधि भूमि को प्राप्त करने में असमर्थता
ii. अविर्गत                B.  इच्छा न होना
iii. अलब्धभूमिकत्व  C. प्राप्त स्थिति में चित्त को लगाए रखना
iv. अनवस्थितत्व      D. विषयो में तृप्ति बनाए रखना

 कूटः
        i    ii    iii    iv
1.    B   C    A    D
2.    B   D    A    C
3.    C   B    D    A
4.    D   C    A    B


Answer- 1- (1), 2- (1), 3- (4), 4- (3), 5- (2), 6- (4), 7- (3), 8- (3), 9- (2), 10- (2), 11- (3), 12- (1), 13- (2), 14- (4), 15- (4), 16- (2), 17- (2), 18- (2), 19- (3), 20- (3), 21- (3), 22- (2), 23- (1), 24- (2), 25- (2)

To be continuous......  

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हठयोग का अर्थ , परिभाषा, उद्देश्य

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कठोपनिषद

कठोपनिषद (Kathopanishad) - यह उपनिषद कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा के अन्तर्गत आता है। इसमें दो अध्याय हैं जिनमें 3-3 वल्लियाँ हैं। पद्यात्मक भाषा शैली में है। मुख्य विषय- योग की परिभाषा, नचिकेता - यम के बीच संवाद, आत्मा की प्रकृति, आत्मा का बोध, कठोपनिषद में योग की परिभाषा :- प्राण, मन व इन्दियों का एक हो जाना, एकाग्रावस्था को प्राप्त कर लेना, बाह्य विषयों से विमुख होकर इन्द्रियों का मन में और मन का आत्मा मे लग जाना, प्राण का निश्चल हो जाना योग है। इन्द्रियों की स्थिर धारणा अवस्था ही योग है। इन्द्रियों की चंचलता को समाप्त कर उन्हें स्थिर करना ही योग है। कठोपनिषद में कहा गया है। “स्थिराम इन्द्रिय धारणाम्‌” .  नचिकेता-यम के बीच संवाद (कहानी) - नचिकेता पुत्र वाजश्रवा एक बार वाजश्रवा किसी को गाय दान दे रहे थे, वो गाय बिना दूध वाली थी, तब नचिकेता ( वाजश्रवा के पुत्र ) ने टोका कि दान में तो अपनी प्रिय वस्तु देते हैं आप ये बिना दूध देने वाली गाय क्यो दान में दे रहे है। वाद विवाद में नचिकेता ने कहा आप मुझे किसे दान में देगे, तब पिता वाजश्रवा को गुस्सा आया और उसने नचिकेता को कहा कि तुम मेरे

हठयोग प्रदीपिका में वर्णित प्राणायाम

हठयोग प्रदीपिका में प्राणायाम को कुम्भक कहा है, स्वामी स्वात्माराम जी ने प्राणायामों का वर्णन करते हुए कहा है - सूर्यभेदनमुज्जायी सीत्कारी शीतल्री तथा।  भस्त्रिका भ्रामरी मूर्च्छा प्लाविनीत्यष्टकुंम्भका:।। (हठयोगप्रदीपिका- 2/44) अर्थात् - सूर्यभेदन, उज्जायी, सीत्कारी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्छा और प्लाविनी में आठ प्रकार के कुम्भक (प्राणायाम) है। इनका वर्णन ऩिम्न प्रकार है 1. सूर्यभेदी प्राणायाम - हठयोग प्रदीपिका में सूर्यभेदन या सूर्यभेदी प्राणायाम का वर्णन इस प्रकार किया गया है - आसने सुखदे योगी बदध्वा चैवासनं ततः।  दक्षनाड्या समाकृष्य बहिस्थं पवन शनै:।।  आकेशादानखाग्राच्च निरोधावधि क्रुंभयेत। ततः शनैः सव्य नाड्या रेचयेत् पवन शनै:।। (ह.प्र. 2/48/49) अर्थात- पवित्र और समतल स्थान में उपयुक्त आसन बिछाकर उसके ऊपर पद्मासन, स्वस्तिकासन आदि किसी आसन में सुखपूर्वक मेरुदण्ड, गर्दन और सिर को सीधा रखते हुए बैठेै। फिर दाहिने नासारन्ध्र अर्थात पिंगला नाडी से शनैः शनैः पूरक करें। आभ्यन्तर कुम्भक करें। कुम्भक के समय मूलबन्ध व जालन्धरबन्ध लगा कर रखें।  यथा शक्ति कुम्भक के पश्चात जालन्धरबन्ध ख

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