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Meaning of Gayatri Mantra in Hindi

   गायत्री- मन्त्र  का अर्थ (हिन्दी में) 

Gayatri Mantra meaning in Hindi
                                      गायत्री-मन्त्र

        ओउम्‌ भूर्भुवः स्व: । तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गों देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ॥           

(१) ओंकार की तीन मात्राएँ-- अकार, उकार, मकार और चौथा अमात्र विराम
 अकार-- एक मात्रा वाले विराट्‌ जो स्थूल जगत के सम्बन्ध से परमात्मा का नाम है।
फल-- पाँचों स्थूल भूतों और उनसे बने हुए पदार्थोको आत्मोन्नति में बाधक होने से हटाकर साधक बनाने वाला अपने विराट रूप के साथ स्थूल जगत्‌ के ऐश्वर्य का उपभोग कराने वाला।
उकार-- दो मात्रा वाले हिरण्यगर्भ जो सूक्ष्म जगत्‌ में सम्बन्धसे परमात्माका नाम है।
फल-- पाँचों स्थूल-सूक्ष्म भूतों और अहंकार आदि को आत्मोन्नति में बाधक होने से हटाकर साधक बनाने वाला, अपने हिरण्यगर्भ रूप के साथ सूक्ष्म जगत्‌ में ऐश्वर्य का उपभोग कराने वाला ।
मकार-- तीनों मात्रा वाले ईश्वर जो कारण जगत्‌ में सम्बन्ध से परमात्मा का नाम है।
फल-- कारण जगत्‌ को आत्मोन्नति में बाधक बनने से हटाकर साधक बनाने वाला, अपने अपर स्वरूप के साथ कारण जगत्‌ में ऐश्वर्य का उपभोग कराने वाला।
अमात्र विराम-- परब्रह्म परमात्माकी प्राप्ति अर्थात्‌ स्वरूपावस्थिति जो प्राणिमात्रका अन्तिम ध्येय है ।

 
(२) तीन महाव्याहृतियाँ-- भू:, भुव:, स्व: ।
भू:-- सारे ब्रह्माण्ड का प्राणरूप (जीवन देने वाला) ईश्वर, सब प्राणधारियों का प्राण-सदृश आधार और प्यारा पृथ्वी लोकका नियन्ता।
भुवः-- सारे ब्रह्माण्ड का अपान रूप (पालन-पोषण करने वाला) ईश्वर, सब प्राणियों को तीनों प्रकार के दुःखों से छुड़ाने वाला, अन्तरिक्ष लोक का नियन्ता।
स्व:-- सारे ब्रह्माण्ड का व्यान रूप (व्यापक) ईश्वर, सब प्राण धारियों को सुख और ज्ञान का देने वाला  द्यौलोक का नियन्ता।


(३) गायत्री के तीन पाद-- तत्सवितुर्वरेण्यम्‌ । भर्गों देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ॥
 तत्‌-- उस ।
सवितु:-- सब जगत्‌ को उत्पन्न करने वाले अर्थात्‌ सब प्राणधारियों के परम माता पिता।
वरेण्यम-- ग्रहण करने योग्य अर्थात्‌ उपासना करने योग्य ।
भर्गः-- शुद्ध स्वरूप का।
देवस्य-- ज्ञानरूप प्रकाश के देने वाले देव के।
धीमहि-- हम ध्यान करते हैं ।
धियः -- बुद्धियोंको।
यः -- जो (पूर्वोक्त सवितादेव)।
नः -- हमारी।
प्रचोदयात्‌-- ठीक मार्ग में प्रवृत्त करे ।
सब प्राणियों के परम पिता- माता, ज्ञान रूप प्रकाश के देने वाले देव के उस उपासना करने योग्य शुद्ध स्वरूप का हम ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धियों को ठीक मार्ग में प्रवृत्त करें । 


       

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