Skip to main content

Yoga MCQ in hindi with answers for NET JRF QCI YCB

 Yoga MCQ in Hindi with answers for NET JRF QCI YCB (Set-15)

नोट:- इस प्रश्नपत्र में (25) बहुसंकल्पीय प्रश्न है। प्रत्येक प्रश्न के दो (2) अंक है। सभी प्रश्न अनिवार्य  

1. जैन दर्शन के ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार, ध्यान के प्रकार हैं
(i) सूक्ष्मध्यान
(ii) आर्तध्यान  
(iii) ज्योतिध्यान  
(iv) रौद्रध्यान
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट :
1. (iii) और (iv) सही हैं।
2. (ii) और (iii) सही हैं |
3. (ii) और (iv) सही हैं ।
4. (i) और (ii) सही हैं ।

2. शैक्षणिक अध्यापन प्रक्रिया के निम्नलिखित अवयव होते हैं :
(i) अध्यापन
(ii) प्रबन्धन
(iii) प्रशासन
(iv) अधिगम
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए : 

कूट :
1. (i) और (ii) सही हैं।
2. (i) और (iii) सही हैं |
3. (i) और (iv) सही हैं ।
4. (ii) और (iii) सही हैं । 

3. घेरण्ड संहिता के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-से आहार द्रव्य अपथ्य हैं ?
(i) यव
(ii) कुलत्थ
(iii) मुद्ग
(iv) तिल
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट :
1. (i) और (iii) सही हैं।
2. (iii) और (iv) सही हैं |
3. (i) और (ii) सही हैं।
4. (ii) और (iv) सही हैं।

4. एक योग कक्षा में योग शिक्षक को अपने निर्देशों को सही ढंग से सम्प्रेषित करने हेतु निम्नलिखित बिन्दु सहायक हो सकते हैं:
(i) निर्देश संक्षिप्त, धीमे और स्पष्ट होने चाहिए
(ii) अध्यापक को विद्यार्थियों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए
(iii) एक बार में अनेक निर्देश दिए जाने चाहिए
(iv) आवश्यक होने पर निर्देश दोहराए जाने चाहिए
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट:
1. (i) और (iv) सही हैं।
2. (i) और (ii) सही हैं |
3. (i) और (iii) सही हैं ।
4. (iii) और (iv) सही हैं। 

5. श्रवण उपांग' का सम्बन्ध है-
(i) कर्मयोग से
(ii) ज्ञानयोग से
(iii) भक्तियोग से
(iv) मंत्रयोग से
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :

कूट:
1. (iii) और (iv) सही हैं।
2. (i) और (ii) सही हैं |
3. (i) और (iv) सही हैं ।
4. (ii) और (iii) सही हैं ।

6. हठप्रदीपिका के अनुसार, ब्रह्मग्रन्थिभेदन से साधक बनता है-
(i) ओजस्वी
(ii) निरोगी
(iii) बुद्धिमान
(iv) सदाचारी
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट :
1. (i) और (ii) सही हैं।
2. (iii) और (iv) सही हैं |
3. (ii) और (iii) सही हैं ।
4. (i) और (iv) सही हैं । 

7. किन योग अभ्यासों का थायरॉयड ग्रन्थि पर सीधा प्रभाव पड़ता है ?
(i) सर्वांगासन
(ii) नौकासन
(iii) जालंधर बंध
(iv) पादहस्तासन
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट :
1. (ii) और (iii) सही हैं।
2. (ii) और (iv) सही हैं |
3. (i) और (iii) सही हैं ।
4. (i) और (ii) सही हैं ।

8. निम्नलिखित में से कौन-सी यौगिक क्रियाएँ अवसाद में निषिद्ध हैं ?
(i) शवासन
(ii) सूर्यभेदी प्राणायाम
(iii) कपालभाति क्रिया
(iv) भ्रामरी प्राणायाम  
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट :
1. (ii) और (iii) सही हैं।
2. (i) और (ii) सही हैं |
3. (i) और (iv) सही हैं ।
4. (iii) और (iv) सही हैं ।

9. इनमें से कौन-से अभ्यास मूल्य आधारित शिक्षा के लिए लाभकारी हैं ? 

(i) प्राणायाम
(ii) यम
(iii) नियम
(iv) षट्कर्म
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट :
1. (ii) और (iii) सही हैं।
2. (i) और (iv) सही हैं |
3. (i) और (ii) सही हैं ।
4. (iii) और (iv) सही हैं ।

10. निम्नलिखित में से कौन-से आसन संतुलनात्मक हैं ?
(i) वृक्षासन
(ii). कुक्कुटासन
(iii) अर्ध-चन्द्रासन
(iv) गरुड़ासन
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट :

1. (ii), (iii) और (iv) सही हैं |
2. (i), (ii) और (iv) सही हैं ।
3. (i), (ii) और (iii) सही हैं ।
4. (ii), (iii) और (iv) सही हैं ।

11. अष्टांगयोग का वर्णन मिलता है-
(i).पातञ्जल योगसूत्र में
(ii) रुद्रयामल तंत्र में
(iii) शारदातिलक में
(iv) ब्रह्मसूत्र में
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूटः
1. (ii), (iii) और (iv) सही हैं |
2. (i) और (iv) सही हैं ।
3. (i), (ii) और (iii) सही हैं।
4. (ii) और (iv) सही हैं ।

12. निनलिखित में से कौन-से लसीका ऊतक नहीं हैं?
(i) एड्रिल (अधिवृक्क) ग्रन्थि
(ii) थायरॉयड (अबटु) प्रन्धि
(iii) टॉन्सिल
(iv) स्पलीन (प्लीहा)
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूटः
1. (i) और (iii) सही हैं।
2. (ii) और (iv) सही हैं |
3. (iii) और (iv) सही हैं।
4. (i) और (ii) सही हैं।

13. घेएण्ड संहिता के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-से आहार द्रव्य पथ्य हैं ?
(i) तक्र  (ii) घृत  (iii) नवनीत  (iv) तैल
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूटः
1. (i) और (ii) सही हैं।
2. (iii) और (iv) सही हैं |
3. (ii) और (iii) सही हैं।
4. (i) और (iv) सही हैं। 

14. आसनों को निम्नलिखित में से किन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है?
(i) ध्यानात्मक
(ii) विश्रान्तिकारी
(iii) आध्यात्मिक
(iv) सामाजिक
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट :
1. (i) और (iv) सही हैं।
2. (iii) और (iv) सही हैं |
3. (i) और (ii) सही हैं ।
4. (ii) और (iii) सही हैं।

15. घेरण्ड संहितानुसार, प्रत्याहार के परिणाम हैं
(i) आत्मा पर विजय
(ii) कामादि शत्रुओं का नाश
(iii) मन को वश में करना
(iv) वृत्तियों को नियंत्रित करना
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कुट :
1. (i) और (iii) सही हैं।
2. (ii) और (iii) सही हैं |
3. (ii) और (iv) सही हैं ।
4. (i) और (iv) सही हैं।  

 16. घेरण्ड संहितानुसार, कपालरन्ध्र धौति किस धौति का प्रकार हैं-
1. हृदधौति      2. अन्तधौति
 3. मूलशोधन  4. दन्तधौति

17. शाकाहारी भोजन में प्रोटीन के प्रमुख स्रोत हैं
(i) सब्जियाँ
(ii) फल
(iii) दालें
(iv) अनाज
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट :
1. (i) और (ii) सही हैं।
2. (iii) और (iv) सही हैं |
3. (ii) और (iv) सही हैं।
4. (i) और (iii) सही हैं।

18. निम्नलिखित में से कौन-से आसन पीछे झुकने वाले हैं ?
(i) उत्तानपादासन
(ii) भुजंगासन
(iii) चक्रासन
(iv) सवागासन
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट :
1. (ii) और (iii) सही हैं।
2. (i) और (iv) सही हैं |
3. (iii) और (iv) सही हैं।
4. (i) और (ii) सही हैं। 

19. ”उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ।” यह कथन किसका है?
(i)  कठोपनिषद्‌
(ii) प्रश्नोपनिषद्‌
(iii) भगवदगीता
(iv) मुण्डकोपनिषद्‌
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट:
1. (i) और (iii) सही हैं।
2. (i) और (ii) सही हैं |
3. (iii) और (iv) सही हैं।
4. (ii) और (iv) सही हैं।

20.  हठप्रदीपिका के अनुसार, महामुद्रा किन बीमारियों में लाभकारी है?
(i) अनिद्रा
(ii) अर्जीर्ण
(iii) चर्म गेग
(iv) श्वास रोग
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूटः
1. (i) और (iv) सही हैं।
2. (iii) और (iv) सही हैं |
3. (i) और (ii) सही हैं।
4. (ii) और (iii) सही हैं।

21. हठयोग प्रदीपिका के अनुसार, किसके अभ्यास से झुर्रियों व बाल पकने के रोग में लाभ मिलता है?
(i) महामुद्रा
(ii) महाबन्ध मुद्रा
(iii) विपरीतकरणी मुद्रा
(iv) महावेध मुद्रा
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कुट :
1. (iii) और (iv) सही हैं।
2. (ii) और (iii) सही हैं |
3. (i) और (ii) सही हैं ।
4. (i) और (iv) सही हैं। 

22. योग साधना में निम्नलिखित में से कौन-से अवरोध हैं?
(i) साहस
(ii) उत्साह
(iii) प्रवास
(iv) प्रजल्प
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट :
1. (i) और (iv) सही हैं।
2. (i) और (iii) सही हैं |
3. (i) और (ii) सही हैं ।
4. (iii) और (iv) सही हैं।

23. टाइप 2  डायबिटीज़ के निम्नलिखित में से क्या कारण होते हैं ?
(i) तनाव
(ii) ध्यान के माध्यम से विश्रान्ति
(iii) व्यायाम की कमी
(iv) बीटा कोशिकाओं का स्वप्रतिरोधी नाश
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट :
1. (ii) और (iv) सही हैं।
2. (iii) और (iv) सही हैं |
3. (i) और (iv) सही हैं ।
4. (i) और (iii) सही हैं। 

 24. निम्नलिखित में से कौन सा रस पित्त दोष का शमन करता हैं ?
(i) कटु
(ii) तिक्त
(iii) लवण
(iv) कषाय
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट :
1. (ii) और (iv) सही हैं।
2. (iii) और (iv) सही हैं |
3. (i) और (iv) सही हैं ।
4. (i) और (iii) सही हैं। 

23. व्यक्तित्व की विशेषताओं में शामिल हैं ?
(i) व्यवहार का विशिष्ट रूप
(ii) चिंतन की विधियाँ
(iii) कार्य करने की विधियाँ
(iv) पर्यावरण से संवाद की विधियाँ
नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर को चुनिए :
कूट :
1. (ii) और (iv) सही हैं।
2. (iii) और (iv) सही हैं |
3. (i) और (iv) सही हैं ।
4. (i) और (ii) सही हैं।

Answer- 1- (3), 2- (3), 3- (4), 4- (1), 5- (4), 6- (1), 7- (3), 8- (3), 9- (1), 10- (2), 11- (3), 12- (4), 13- (3), 14- (3), 15- (2), 16- (4), 17- (2), 18- (1), 19- (1), 20- (4), 21- (1), 22- (4), 23- (4), 24- (1), 25- (4)


To be continuous...... 


Comments

Popular posts from this blog

"चक्र " - मानव शरीर में वर्णित शक्ति केन्द्र

7 Chakras in Human Body हमारे शरीर में प्राण ऊर्जा का सूक्ष्म प्रवाह प्रत्येक नाड़ी के एक निश्चित मार्ग द्वारा होता है। और एक विशिष्ट बिन्दु पर इसका संगम होता है। यह बिन्दु प्राण अथवा आत्मिक शक्ति का केन्द्र होते है। योग में इन्हें चक्र कहा जाता है। चक्र हमारे शरीर में ऊर्जा के परिपथ का निर्माण करते हैं। यह परिपथ मेरूदण्ड में होता है। चक्र उच्च तलों से ऊर्जा को ग्रहण करते है तथा उसका वितरण मन और शरीर को करते है। 'चक्र' शब्द का अर्थ-  'चक्र' का शाब्दिक अर्थ पहिया या वृत्त माना जाता है। किन्तु इस संस्कृत शब्द का यौगिक दृष्टि से अर्थ चक्रवात या भँवर से है। चक्र अतीन्द्रिय शक्ति केन्द्रों की ऐसी विशेष तरंगे हैं, जो वृत्ताकार रूप में गतिमान रहती हैं। इन तरंगों को अनुभव किया जा सकता है। हर चक्र की अपनी अलग तरंग होती है। अलग अलग चक्र की तरंगगति के अनुसार अलग अलग रंग को घूर्णनशील प्रकाश के रूप में इन्हें देखा जाता है। योगियों ने गहन ध्यान की स्थिति में चक्रों को विभिन्न दलों व रंगों वाले कमल पुष्प के रूप में देखा। इसीलिए योगशास्त्र में इन चक्रों को 'शरीर का कमल पुष्प” कहा ग...

सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति सामान्य परिचय

प्रथम उपदेश- पिण्ड उत्पति विचार सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति अध्याय - 2 (पिण्ड विचार) सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार नौ चक्रो के नाम 1. ब्रहमचक्र - मूलाधार मे स्थित है, कामनाओं की पूर्ति होती हैं। 2. स्वाधिष्ठान चक्र - इससे हम चीजो को आकर्षित कर सकते है। 3. नाभी चक्र - सिद्धि की प्राप्ति होती है। 4. अनाहत चक्र - हृदय में स्थित होता है। 5. कण्ठचक्र - विशुद्धि-संकल्प पूर्ति, आवाज मधुर होती है। 6. तालुचक्र -  घटिका में, जिह्वा के मूल भाग में,  लय सिद्धि प्राप्त होती है। 7. भ्रुचक्र -     आज्ञा चक्र - वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है। 8. निर्वाणचक्र - ब्रहमरन्ध्र, सहस्त्रार चक्र, मोक्ष प्राप्ति 9. आकाश चक्र - सहस्त्रारचक्र के ऊपर,  भय- द्वेष की समाप्ति होती है। सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार सोहल आधार (1) पादांगुष्ठ आधार (2) मूलाधार (3) गुदाद्वार आधार (4) मेद् आधार (5) उड्डियान आधार (6) नाभी आधार (7) हृदयाधार (8) कण्ठाधार (9) घटिकाधार (10) तालु आधार (11) जिह्वा आधार (12) भ्रूमध्य आधार (13) नासिका आधार (14) नासामूल कपाट आधार (15) ललाट आधार (16) ब्रहमरंध्र आधार सिद्ध...

हठयोग प्रदीपिका में वर्णित प्राणायाम

हठयोग प्रदीपिका में प्राणायाम को कुम्भक कहा है, स्वामी स्वात्माराम जी ने प्राणायामों का वर्णन करते हुए कहा है - सूर्यभेदनमुज्जायी सीत्कारी शीतल्री तथा।  भस्त्रिका भ्रामरी मूर्च्छा प्लाविनीत्यष्टकुंम्भका:।। (हठयोगप्रदीपिका- 2/44) अर्थात् - सूर्यभेदन, उज्जायी, सीत्कारी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्छा और प्लाविनी में आठ प्रकार के कुम्भक (प्राणायाम) है। इनका वर्णन ऩिम्न प्रकार है 1. सूर्यभेदी प्राणायाम - हठयोग प्रदीपिका में सूर्यभेदन या सूर्यभेदी प्राणायाम का वर्णन इस प्रकार किया गया है - आसने सुखदे योगी बदध्वा चैवासनं ततः।  दक्षनाड्या समाकृष्य बहिस्थं पवन शनै:।।  आकेशादानखाग्राच्च निरोधावधि क्रुंभयेत। ततः शनैः सव्य नाड्या रेचयेत् पवन शनै:।। (ह.प्र. 2/48/49) अर्थात- पवित्र और समतल स्थान में उपयुक्त आसन बिछाकर उसके ऊपर पद्मासन, स्वस्तिकासन आदि किसी आसन में सुखपूर्वक मेरुदण्ड, गर्दन और सिर को सीधा रखते हुए बैठेै। फिर दाहिने नासारन्ध्र अर्थात पिंगला नाडी से शनैः शनैः पूरक करें। आभ्यन्तर कुम्भक करें। कुम्भक के समय मूलबन्ध व जालन्धरबन्ध लगा कर रखें।  यथा शक्ति कुम्भक के प...

हठयोगप्रदीपिका में वर्णित मुद्रायें, बंध

  हठयोगप्रदीपिका में वर्णित मुद्रायें, बंध हठयोग प्रदीपिका में मुद्राओं का वर्णन करते हुए स्वामी स्वात्माराम जी ने कहा है महामुद्रा महाबन्धों महावेधश्च खेचरी।  उड़्डीयानं मूलबन्धस्ततो जालंधराभिध:। (हठयोगप्रदीपिका- 3/6 ) करणी विपरीताख्या बज़्रोली शक्तिचालनम्।  इदं हि मुद्रादश्क जरामरणनाशनम्।।  (हठयोगप्रदीपिका- 3/7) अर्थात महामुद्रा, महाबंध, महावेध, खेचरी, उड्डीयानबन्ध, मूलबन्ध, जालन्धरबन्ध, विपरीतकरणी, वज़्रोली और शक्तिचालनी ये दस मुद्रायें हैं। जो जरा (वृद्धा अवस्था) मरण (मृत्यु) का नाश करने वाली है। इनका वर्णन निम्न प्रकार है।  1. महामुद्रा- महामुद्रा का वर्णन करते हुए हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है- पादमूलेन वामेन योनिं सम्पीड्य दक्षिणम्।  प्रसारितं पद कृत्या कराभ्यां धारयेदृढम्।।  कंठे बंधं समारोप्य धारयेद्वायुमूर्ध्वतः।  यथा दण्डहतः सर्पों दंडाकारः प्रजायते  ऋज्वीभूता तथा शक्ति: कुण्डली सहसा भवेतत् ।।  (हठयोगप्रदीपिका- 3/9,10)  अर्थात् बायें पैर को एड़ी को गुदा और उपस्थ के मध्य सीवन पर दृढ़ता से लगाकर दाहिने पैर को फैला कर रखें...

हठयोग प्रदीपिका के अनुसार षट्कर्म

हठप्रदीपिका के अनुसार षट्कर्म हठयोगप्रदीपिका हठयोग के महत्वपूर्ण ग्रन्थों में से एक हैं। इस ग्रन्थ के रचयिता योगी स्वात्माराम जी हैं। हठयोग प्रदीपिका के द्वितीय अध्याय में षटकर्मों का वर्णन किया गया है। षटकर्मों का वर्णन करते हुए स्वामी स्वात्माराम  जी कहते हैं - धौतिर्बस्तिस्तथा नेतिस्त्राटकं नौलिकं तथा।  कपालभातिश्चैतानि षट्कर्माणि प्रचक्षते।। (हठयोग प्रदीपिका-2/22) अर्थात- धौति, बस्ति, नेति, त्राटक, नौलि और कपालभोंति ये छ: कर्म हैं। बुद्धिमान योगियों ने इन छः कर्मों को योगमार्ग में करने का निर्देश किया है। इन छह कर्मों के अतिरिक्त गजकरणी का भी हठयोगप्रदीपिका में वर्णन किया गया है। वैसे गजकरणी धौतिकर्म के अन्तर्गत ही आ जाती है। इनका वर्णन निम्नलिखित है 1. धौति-  धौँति क्रिया की विधि और  इसके लाभ एवं सावधानी- धौँतिकर्म के अन्तर्गत हठयोग प्रदीपिका में केवल वस्त्र धौति का ही वर्णन किया गया है। धौति क्रिया का वर्णन करते हुए योगी स्वात्माराम जी कहते हैं- चतुरंगुल विस्तारं हस्तपंचदशायतम। . गुरूपदिष्टमार्गेण सिक्तं वस्त्रं शनैर्गसेत्।।  पुनः प्रत्याहरेच्चैतदुदितं ध...

Yoga MCQ Questions Answers in Hindi

 Yoga multiple choice questions in Hindi for UGC NET JRF Yoga, QCI Yoga, YCB Exam नोट :- इस प्रश्नपत्र में (25) बहुसंकल्पीय प्रश्न है। प्रत्येक प्रश्न के दो (2) अंक है। सभी प्रश्न अनिवार्य ।   1. किस उपनिषद्‌ में ओंकार के चार चरणों का उल्लेख किया गया है? (1) प्रश्नोपनिषद्‌         (2) मुण्डकोपनिषद्‌ (3) माण्डूक्योपनिषद्‌  (4) कठोपनिषद्‌ 2 योग वासिष्ठ में निम्नलिखित में से किस पर बल दिया गया है? (1) ज्ञान योग  (2) मंत्र योग  (3) राजयोग  (4) भक्ति योग 3. पुरुष और प्रकृति निम्नलिखित में से किस दर्शन की दो मुख्य अवधारणाएं हैं ? (1) वेदांत           (2) सांख्य (3) पूर्व मीमांसा (4) वैशेषिक 4. निम्नांकित में से कौन-सी नाड़ी दस मुख्य नाडियों में शामिल नहीं है? (1) अलम्बुषा  (2) कुहू  (3) कूर्म  (4) शंखिनी 5. योगवासिष्ठानुसार निम्नलिखित में से क्या ज्ञानभूमिका के अन्तर्गत नहीं आता है? (1) शुभेच्छा (2) विचारणा (3) सद्भावना (4) तनुमानसा 6. प्रश्नो...

चित्त | चित्तभूमि | चित्तवृत्ति

 चित्त  चित्त शब्द की व्युत्पत्ति 'चिति संज्ञाने' धातु से हुई है। ज्ञान की अनुभूति के साधन को चित्त कहा जाता है। जीवात्मा को सुख दुःख के भोग हेतु यह शरीर प्राप्त हुआ है। मनुष्य द्वारा जो भी अच्छा या बुरा कर्म किया जाता है, या सुख दुःख का भोग किया जाता है, वह इस शरीर के माध्यम से ही सम्भव है। कहा भी गया  है 'शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्' अर्थात प्रत्येक कार्य को करने का साधन यह शरीर ही है। इस शरीर में कर्म करने के लिये दो प्रकार के साधन हैं, जिन्हें बाह्यकरण व अन्तःकरण के नाम से जाना जाता है। बाह्यकरण के अन्तर्गत हमारी 5 ज्ञानेन्द्रियां एवं 5 कर्मेन्द्रियां आती हैं। जिनका व्यापार बाहर की ओर अर्थात संसार की ओर होता है। बाह्य विषयों के साथ इन्द्रियों के सम्पर्क से अन्तर स्थित आत्मा को जिन साधनों से ज्ञान - अज्ञान या सुख - दुःख की अनुभूति होती है, उन साधनों को अन्तःकरण के नाम से जाना जाता है। यही अन्तःकरण चित्त के अर्थ में लिया जाता है। योग दर्शन में मन, बुद्धि, अहंकार इन तीनों के सम्मिलित रूप को चित्त के नाम से प्रदर्शित किया गया है। परन्तु वेदान्त दर्शन अन्तःकरण चतुष्टय की...

घेरण्ड संहिता में वर्णित "प्राणायाम" -- विधि, लाभ एवं सावधानियाँ

घेरण्ड संहिता के अनुसार प्राणायाम घेरण्डसंहिता में महर्षि घेरण्ड ने आठ प्राणायाम (कुम्भको) का वर्णन किया है । प्राण के नियन्त्रण से मन नियन्त्रित होता है। अत: प्रायायाम की आवश्यकता बताई गई है। हठयोग प्रदीपिका की भांति प्राणायामों की संख्या घेरण्डसंहिता में भी आठ बताई गईं है किन्तु दोनो में थोडा अन्तर है। घेरण्डसंहिता मे कहा गया है- सहित: सूर्यभेदश्च उज्जायी शीतली तथा। भस्त्रिका भ्रामरी मूर्च्छा केवली चाष्टकुम्भका।। (घे.सं0 5 / 46) 1. सहित, 2. सूर्य भेदन, 3. उज्जायी, 4. शीतली, 5. भस्त्रिका, 6. भ्रामरी, 7. मूर्च्छा तथा 8. केवली ये आठ कुम्भक (प्राणायाम) कहे गए हैं। प्राणायामों के अभ्यास से शरीर में हल्कापन आता है। 1. सहित प्राणायाम - सहित प्राणायाम दो प्रकार के होते है (i) संगर्भ और (ii) निगर्भ । सगर्भ प्राणायाम में बीज मन्त्र का प्रयोग किया जाता हैँ। और निगर्भ प्राणायाम का अभ्यास बीज मन्त्र रहित होता है। (i) सगर्भ प्राणायाम- इसके अभ्यास के लिये पहले ब्रह्मा पर ध्यान लगाना है, उन पर सजगता को केन्द्रित करते समय उन्हें लाल रंग में देखना है तथा यह कल्पना करनी है कि वे लाल है और रजस गुणों से...

चित्त विक्षेप | योगान्तराय

चित्त विक्षेपों को ही योगान्तराय ' कहते है जो चित्त को विक्षिप्त करके उसकी एकाग्रता को नष्ट कर देते हैं उन्हें योगान्तराय अथवा योग के विध्न कहा जाता।  'योगस्य अन्तः मध्ये आयान्ति ते अन्तरायाः'।  ये योग के मध्य में आते हैं इसलिये इन्हें योगान्तराय कहा जाता है। विघ्नों से व्यथित होकर योग साधक साधना को बीच में ही छोड़कर चल देते हैं। विध्न आयें ही नहीं अथवा यदि आ जायें तो उनको सहने की शक्ति चित्त में आ जाये, ऐसी दया ईश्वर ही कर सकता है। यह तो सम्भव नहीं कि विध्न न आयें। “श्रेयांसि बहुविध्नानि' शुभकार्यों में विध्न आया ही करते हैं। उनसे टकराने का साहस योगसाधक में होना चाहिए। ईश्वर की अनुकम्पा से यह सम्भव होता है।  व्याधिस्त्यानसंशयप्रमादालस्याविरतिभ्रान्तिदर्शनालब्धभूमिकत्वानवस्थितत्वानि चित्तविक्षेपास्तेऽन्तरायाः (योगसूत्र - 1/30) योगसूत्र के अनुसार चित्त विक्षेपों  या अन्तरायों की संख्या नौ हैं- व्याधि, स्त्यान, संशय, प्रमाद, आलस्य, अविरति, भ्रान्तिदर्शन, अलब्धभूमिकत्व और अनवस्थितत्व। उक्त नौ अन्तराय ही चित्त को विक्षिप्त करते हैं। अतः ये योगविरोधी हैं इन्हें योग के मल...

कठोपनिषद

कठोपनिषद (Kathopanishad) - यह उपनिषद कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा के अन्तर्गत आता है। इसमें दो अध्याय हैं जिनमें 3-3 वल्लियाँ हैं। पद्यात्मक भाषा शैली में है। मुख्य विषय- योग की परिभाषा, नचिकेता - यम के बीच संवाद, आत्मा की प्रकृति, आत्मा का बोध, कठोपनिषद में योग की परिभाषा :- प्राण, मन व इन्दियों का एक हो जाना, एकाग्रावस्था को प्राप्त कर लेना, बाह्य विषयों से विमुख होकर इन्द्रियों का मन में और मन का आत्मा मे लग जाना, प्राण का निश्चल हो जाना योग है। इन्द्रियों की स्थिर धारणा अवस्था ही योग है। इन्द्रियों की चंचलता को समाप्त कर उन्हें स्थिर करना ही योग है। कठोपनिषद में कहा गया है। “स्थिराम इन्द्रिय धारणाम्‌” .  नचिकेता-यम के बीच संवाद (कहानी) - नचिकेता पुत्र वाजश्रवा एक बार वाजश्रवा किसी को गाय दान दे रहे थे, वो गाय बिना दूध वाली थी, तब नचिकेता ( वाजश्रवा के पुत्र ) ने टोका कि दान में तो अपनी प्रिय वस्तु देते हैं आप ये बिना दूध देने वाली गाय क्यो दान में दे रहे है। वाद विवाद में नचिकेता ने कहा आप मुझे किसे दान में देगे, तब पिता वाजश्रवा को गुस्सा आया और उसने नचिकेता को कहा कि तुम ...