तैतरीय उपनिषद (Taittiriya Upanishad)
तैतरीय उपनिषद कृष्ण यजुर्वेद के अंतर्गत है। इस उपनिषद में तीन वल्लियाँ है- शिक्षावल्ली, ब्रह्मान्दवल्ली और भृगुवल्ली। तैतरीय उपनिषद में पंचकोशो के बारे में बताया गया है।व्याहिति-
तैतरीय उपनिषद में 4 व्याहितियाँ हैं- भूः - अग्नि , भुवः - वायु, स्वः - आदित्य , महः - चन्द्रमा
1. शिक्षावल्ली- इसे "सांहितो उपनिषद" भी कहते हैं। इसमें ब्रह्माज्ञान प्राप्ति के साधनों का वर्णन है। शिक्षावल्ली मे साधन रूप में ऋत, सत्य, स्वाध्याय, प्रवचन, शम, दम, अग्निहोत्र, अतिथि सेवा, श्रद्धामय दान माता-पिता, गुरुजन सेवा, आदि कर्मोनुष्ठानों का वर्णन है। शिक्षावल्ली में 6 अंग है:- वर्ण, स्तर, मात्रा, बल, साम सन्तान।
शिक्षावल्ली में ब्रह्मा प्राप्ति के साधनों का वर्णन है। ईश्वर को अर्यमा, वरुण, रुद्र, महादेव, मेघ आदि कहा है। "शान्ति" शब्द से भीतर सुख व समता होना बताया गया है। तीन प्रकार के दुःख है आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक, इसलिए शांति: का उच्चारण तीन बार होता है। शिक्षावल्ली आरण्यक का 7 प्रपाठक हैं।
विद्या के लिए -
पूर्वरूप - आचार्य
उत्तररूप - शिष्य
अध्यात्मविद्या का केंद्र स्थित सिर है वही अन्त: करणों का केंद्र है। ईश्वर मेधावी बुद्धि दे, शारीरिक बल, वाणी में मधुरता, बहुश्रुत और कीर्ति प्राप्त करना, ग्रहस्थ व समाजगत जीवन उच्च बनाने के लिए, अच्छे वस्त्र, पशुओं, खाद्य, धन, वस्तुओं का होना। शील, ब्रह्मचारी, इन्द्रियों पर अधिकार हो। बुद्धि व ईश्वर परायणता हो।
पंच प्राण- i. उदान ii. प्राण iii. समान iv. अपान v. व्यान
स्वाध्याय- शास्त्रों का नियमपूर्ण अध्ययन व मनन, आत्मध्ययन (आत्मनिरिक्षण)
पंच इन्द्रियाँ- i. आंख (चक्षु) ii. कान (श्रोत्र) iii. मन (मनः) iii. वाणी (वाक) v. त्वचा
पंच धातु- i. चर्म ii. माँस iii. नाड़ी iv. हड्डी v. चर्बी
स्वाध्याय व प्रवचन की आवश्यकता:-
शिक्षा समाप्त होने पर क्रियात्मक बातों का ध्यान, माता-पिता, गुरु को देव कोटि में मानना, गुरु के अच्छे आचरणों का पालन। कभी प्रमाद नहीं करना आदि।
2 ब्रह्मानन्दवल्ली- ब्रह्मानन्दवली में ' ब्रंह्मा' की उत्पत्ति ' असत्' से बताई है। ब्रह्मानन्दवली में ही पंचकोशों का वर्णन है। ब्रह्मा से सृष्टि या पुरुष उत्पत्ति क्रम ब्रह्मा (परमात्मा)-आकाश- वायु- अग्नि- जल- पृथ्वी-औषधियाँ- अन्न- पुरुष ( प्रज्ञा) प्रज्ञा की उत्पत्ति अन्न से हुई है। इसी को 'सर्व औषधि' कहा गया है जो अन्नमय कोष भी है।
पंचकोष-
आनन्दमय - कारण शरीर
विज्ञानमय - कारण शरीर
मनोमय - सुक्ष्मशरीर
प्राणमय - सुक्ष्मशरीर
अन्नमय - स्थूल शरीर
" पुरूष विध:" शब्द कोशो के लिए प्रयोग होता है। ब्रंह्मा के दो रूप हैं सत् और व्यत्त इनको सत्य कहा है। पंच कोषों द्वारा ब्रह्मा की प्राप्ति होती है।
3. भृगुवल्ली- भृगु ॠषि अपने पिता वरूण देव के पास जाते है तथा उनसे प्रश्न करते है-
प्रश्न- भृगु अपने पिता वरूण से सवाल करता है कि ब्रह्मा का उपदेश दे?
उत्तर- अन्न, प्राण, आँखें, श्रोत्र और मन, वाणी जिससे यह उत्पन्न होते हैं जीते हैं और अन्त में जिसमें विलीन हो जाते हैं वहीं ब्रह्मा है।
ज्ञान के स्तर- अन्न ही ब्रह्मा है- पहले स्तर का ज्ञान, प्राण ही ब्रह्मा है- दूसरे स्तर का ज्ञान, मन ही ब्रह्मा है- तीसरे स्तर का ज्ञान, विज्ञान ही ब्रह्म है- . चौथे स्तर का ज्ञान, आनन्द भी ब्रह्म है - पाँचवे स्तर का ज्ञान
अन्त में आनन्द ही ब्रह्मा हैं। अर्थात् ये सभी ब्रह्मा हैं।
ब्रह्मानन्दवली व भृगुवल्ली को "वारुपी उपनिषद" भी कहते है इसमें 'विशुद्ध ब्रह्माज्ञान' का वर्णन है। ब्रह्मानन्दवली व भृगुवली क्रमश: 8, 9 वां प्रपाठक है। 5 लोकों में 5 महा संहिता व्याप्त है इसे ही 'महासंहिता' कहते हैं।
UGC NET Yoga June 2019 Solved Paper
Comments
Post a Comment