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सिद्ध सिद्धांत पद्धति - प्रथम अध्याय

 सिद्ध सिद्धांत पद्धति

सिद्ध- अर्थात- योगी, महान पुरुष

सिद्धांत-  अर्थात्- निश्चित मत  

पद्धति- अर्थात्- मार्ग

अर्थात्‌ सिद्ध योगियों के निश्चित मार्ग पर चलना 

सिद्ध सिद्धांत पद्धति के लेखक गुरू गौरक्षनाथ जी है। सिद्ध सिद्धांत पद्धति में छः अध्याय या उपदेश है।

1. पिण्ड उत्पति विचार  2, पिण्ड विचार  3. पिण्ड ज्ञान  4. पिण्ड धारा  5. समरसता  6. अवधूत की विशेषता 

1. प्रथम अध्याय- पिण्ड उत्पति विचार-

परब्रहमा की पांच आदिम शक्तियों की चर्चा की हैं

(i) निजा या अनामा शक्ति-  नाम रहित, सत्य, सनातन जो नित्य है।  

(ii) पराशक्ति- सृष्टि की इच्छा।  

(iii) अपरा शक्ति- स्पंद के उत्पन्न होने से।  

(iv) सूक्ष्म शक्ति- अंहकार भाव से निर्मित शक्ति 

(v) कुण्डलिनी शक्ति- मोक्ष प्रदान करने वाली जीवन मरण के बन्धन से मुक्ति देने वाली।

निजा या अनामा शक्ति के पाँच गुण

(i) नित्यता - जो नित्य है सदा से चली आ रही है। 

(ii) निरंजना - राग, द्वेष, क्रोध, मोह से छुटना अभाव ही निरंजन है। 

(iii) निस्पंदना - चंचलता से रहित। 

(iv) निराभाजता - भेद रहित अभेद शक्ति। 

(v) निरूथान - परिणाम रहित शक्ति का उत्पन्न होना।

पराशक्ति के पाँच गुण

(i) अस्मिता - जिसमें स्वार्थ विदूमान रहता हो। 

(ii) अप्रमेयता - परिछेदा जिसको भेदा न जा सके, छेद न किया जा सके।  

(iii) अभिन्‍नता - भिन्‍नता से रहित।  

(iv) अनन्ता - अविनाशी, नित्य शक्ति।  

(v) अव्यक्तता - सूक्ष्म अणु से छोटी, जिसे व्यक्त न किया जा सके। 

अपरा शक्ति के पाँच गुण

(i) स्फुर्ता - संचालन करना, शरीर के सभी अंगो प्रक्रियाओं का संचालन करना। 

(ii) स्फुटता - अलोकित या प्रकाशित करना जैसे सूर्य से संसार प्रकाशित होता है

(iii) सफारता - संयमन की ताकत। 

(iv) सफोरता - प्रकट होने की क्षमता।  

(v) स्फुर्तिता - प्रोत्माहन करना।

सूक्ष्म शक्ति के पाँच गुण

(i) निरंसता - अहम्‌ का भाव होना। 

(ii) निरन्तरता - बिना रूकावट के निरन्तर । 

(iii) निश्चितता - सब जगह उपस्थित होना। 

(iv) निश्चयता - संशय से रहित।  

(v) निरविकल्पता - संकल्प रहित शक्ति। 

कृण्डलिनी शक्ति के पाँच गुण

(i) पूर्णता - पूर्ण, बिना कमी के।  

(ii)  प्रतिबिम्ता- जैसा है वैसा आभास होना। 

(iii) प्रबलता - शक्ति सम्पन्न 

(iv) प्रोचलता - बढ़ते रहना। 

(v) प्रत्यडमुखता - सृष्टि उत्पति की सामग्री का भाव होना।

परपिण्ड उत्पति के पाँच अधिष्ठा देव

(i) अपरंपद - ।

(ii) परमपद - सबसे ऊँच्चा, सर्वोच्च पद।  

(iii) शून्य - लिनता, पूर्णता, मुर्च्छा, उन्मानी, लोलता। 

(iv) निरंजनाम - सत्यत्व, सहजत्व, समरसता, सर्वविधता। 

(v) परमात्मा - अभेदता, अछेदता, अविनासिता, अक्षत्व

 परपिण्ड उत्पति - अनाध्य पिंड से आध्य पिण्ड की प्राप्ति।

अनाध्य पिंड से - परमानंद की प्राप्ति 
परमानंद से - प्रबोध की प्राप्ति 
प्रबोध से - चित्दुद्य। 
चित्दुद्य से - चित्त प्रकाश। 
चित्त प्रकाश से - सोहम भाव

परमानन्द के पाँच गुण 

(i) स्पंद (ii) हर्ष (iii) उत्साह  (iv) निस्पंद  (v) नित्य

 प्रबोध के पाँच गुण

 (i) उदय (ii) उल्लास (iii) अवभास  (iv) विकाश  (v) प्रभा

चित्दुद्य के पाँच गुण

 (i) सदभाव(ii) विचार (iii) कर्तव्य  (iv) ज्ञानतत्व  (v) स्वतन्त्रत्व

चित्तप्रकाश के पाँच गुण 

 (i) निर्विकार- कोई विकार न होना। (ii) निर्विकल्प- कोई विकल्प न होना।  (iii) निष्कल- । (iv) समता- समान भाव हो। (v) विश्रान्ति-. आत्मभाव।

सोहम् भाव के पाँच गुण

(i) अहन्ता (ii) अखण्ड ऐश्वर्य (iii) स्वात्यता (iv) विश्वानुभवसामर्थ्य (v) सर्वज्ञत्व

महाआकाश के पांच गुण

(i) अवकाश- रिक्त, खाली 

(ii) अछिद्र- छिद्र रहित 

(iii) अस्पर्श- जिसे स्पर्श नहीं कर सकते।  

(iv) नील वर्ण- नीला रंग है। 

(v) शब्द- की उत्पति आकाश से है।

महावायु के पाँच गुण

(i) संचार (ii) संचालन (iii) स्पर्श (iv) शोषित- सोखना। (v) धुम्रवर्ण- धुआ जैसा रंग होना।

महातेज के पाँच गुण

(i) दाहकत्व- जलाने की क्षमता। 

(ii) पाचकत्व- पचाने की क्षमता। 

(iii) उष्णता- गर्म करने की क्षमता। 

(iv) प्रकाश- अंधकार को मिटाने वाला। 

(v) रक्‍त वर्ण-  खून जैसा लाल रंग होना।

महाजल के पाँच गुण

(i) महाप्रवाह- उमड़ उमडकर आना, चलाना। (ii) आप्यापन (iii) द्रव्य (iv) रस (v) श्वेत वर्ण

महापृथ्वी के पाँच गुण 

(i) स्थूलता- ठोस दिखाई देना। 

(ii) नानाकारता- विभिन्‍न प्रकार की विभिन्‍नता पेड़-पौधें, जीवजन्तु, नदिया आदि। 

(iii) काठिन्य- मजबूत, कठिन, कठोरता।  

(iv) गन्ध- पृथ्वी गन्धयुक्त है 

(v) पीतवर्ण- पीला जिसका रंग है।

महासाकार पिण्ड की आठ मूर्तियां

(1) शिव  (2) सदाशिव  (3) विष्णु  (4) भैरव  (5) ईश्वर  (6) ब्रह्मा  (7) श्रीकण्ठ  (8)रूद्र

नर-नारी उत्पति

प्रकृति पिण्ड की उत्पत्ति जिसे पंच भौतिक शरीर कहा जाता है। 

भूमि तत्व के पांच गुण (शरीर निर्माण के पांच गुण) 

(i) अस्थि (ii) त्वचा  (iii) रोम (iv) मांस (v) नाड़ी

जल तत्व के पाँच गुण

(i) लार (ii) मूत्र  (iii) शुक्र (iv) रक्त (v) स्वेद

अग्नितत्व के पाँच गुण

(i) क्षुधा (भूख)  (ii) वूषा (प्यास)  (iii) निन्‍द्रा  (iv) कान्ति (v)आलस्य

वायु तत्व के पाँच गुण

(i) धावन (दौड़ना) (ii) भ्रमण (घूमना)  (iii) प्रसारण  (iv) आकूंचन  (v) निरोधन (रोकना)

आकाश तत्व के पाँच गुण 

(i) राग (ii) द्वेष (iii) भय (iv) लज्जा (v) मोह

सिद्धसिद्धांतपद्धति के अनुसार पाँच अन्तःकरण

(i) मन  (ii) बुद्धि (iii) अंहकार (iv) चित्त (v) चैतन्य 

मन के पाँच गुण 

(i) संकल्प- कल्प की क्रिया के द्वारा निरूपित होती है।  

(ii) विकल्प- विकल्प भी तलाशना मन का गुण है।  

(iii) मूर्च्छा- ग्रहन न करना, हठधर्मिता दिखाना ये भी मन का गुण है। 

(iv) जड़ता- कुछ न सीखने का गुण प्रगति न करना।  

(v) मनन- मननांत्‌ मनः मनन करना, सोचना विचारणा मन का गुण है।

बुद्धि के पाँच गुण 

(i) विवेक- सत्य, असत्य, सही-गलत आदि को देखने निर्णय करने का भाव।  

(ii) वैराग्य- सुख की इच्छा, भौतिकता, बुराईयों का त्याग वैराग्य है। 

(iii) शान्ति- शान्त, सौम्य भाव | 

(iv) सन्‍तोष- पुरूषार्थ के बाद जो प्राप्त, उसमें सन्तुष्टि करना ही संतोष है।  

(v) अक्षमा- क्षमाशील होना चाहिये।

अंहकार के पाँच गुण 

(i) अभिमान- घमण्ड, मैं का भाव | 

(ii) मदिय- मेरा, अहम, मद का भाव।  

(iii) मम सुखम्- मेरा सुख। 

(iv) मम दुखम- मेरा दुःख है।  

(v) मम देह- मेरे द्वारा सब कुछ उत्पन्न है।

चित्त के पाँच गुण 

(i) मति- बुद्धि, सत्य का भान कराने वाली| 

(ii) धृति- मेधा बुद्धि।  

(iii) स्मृति- याद रखना, संचित रखना। 

(iv) त्याग- बलिदान, समर्पण का भाव  

(v) स्वीकार- एक्सेप्ट करना|

चैतन्य के पाँच गुण 

(i) विमर्श- चर्चा करना  

(ii) शीलन- यर्थाथज्ञाऩ की प्राप्ति में लगे रहना। 

(iii) घैर्य- धीरता। 

(iv) निस्पृह- भौतिक वस्तुओं से जुड़ाव न होना। 

(v) चिन्तम- ज्ञान के लिये निरन्तरता।

पंचकुल- 

(i) सत्व (ii) रज (iii) तम (iv) काल (v) जीव

सिद्धसिद्धांतपद्धति के अनुसार चन्द्रमा की सत्रह कला

(1) उलोला (2) कालोनी (3) उछलन्ति (4) उन्मदीनि (5) तारंगिनी (6) शोषिनी  (7) लम्पता (8) प्रवृति (9) लहरी (10) लोला (11) लोलिहना (12) प्रशान्ति (13) प्रवाह (14) सौम्य  (15) प्रसन्‍ना  (16) प्लवन्ति   (17) निवृति

सिद्धसिद्धांतपद्धति के अनुसार अग्नि की एकादश (11) कला

(1) दीपिका (2) राजिका (3) ज्वलिनी (4) विषफुलिंगिनी (5) प्रच्छन्दना (6) पाचिका (7) रोद्रधरी (8) दाहिका (9) रांगिनी (10) शिखावती (11) ज्योति

सिद्धसिद्धांतपद्धति के अनुसार सूर्य की तेरह (13) कला

(1) तापिनी (2) ग्रहसिका (3) उग्र (4) आकुन्ची(5) स्पर्शावति (6) शोषिनी (7) प्रबोधिनी (8) समरा (9) आरक्षिणी (10) तुष्टिवर्धिनी (11) उर्मानी (12) कर्वान्ति (13) प्रभावति

सिद्धसिद्धांतपद्धति के अनुसार दस नाडियाँ

(1) ईडा -  बाँया/वाम नासिका 

(2) पिंगला - दायाँ/दक्षिण नासिका 

(3) सुषुम्णा -  मध्य मेरू  

(4) सरस्वती -  मुख में निवास। सरस्वती की तरह आवाज होना। 

(5) पुषा - बांयी आँख 

(6) अलम्बुषबा -  दांयी आँख 

(7) गान्धारी -  बांया कान 

(8) हस्तिजिह्वा - दांया कान 

(9) कुहू - गुद्धा दवार (Anus) मूलाधार में । 

(10) शंखिनी - पेनिस,  लिंग में।

व्यक्ति शक्ति पंचक

(i) इच्छा (ii) क्रिया (iii) माया (iv) प्रकृति (v) वाक

प्रत्यक्ष करण पंचक

(i) कर्म (ii) कामः (iii) चन्द्रमा (iv) सूर्य (v) अग्नि

कर्म के पाँच गुण

(i) शुभ -  अच्छे कर्मों को शुभ कर्म कहते है।  

(ii) अशुभ -  बुरे कर्म।  

(iii) यश - सम्मान होना। 

(iv) अपकीर्ति - अशुभ कर्म करने पर अपमान होना।  

(v) अदृश्यफल साधना - अन्दर या मन ही मन फल की कामना करना।

काम के पाँच गुण

(i) रति - औरत के प्रति आसक्ति कामुकता।  

(ii) प्रीति - आसक्ति, सममोहन, प्रेम आदि। 

(iii) क्रीड़ा - विषयभोग आदि।  

(iv) कामना - चाहना, इच्छा करना | 

(v) आतुरता - लालसा बनी रहना,, आतुरता बनी रहना। 


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सिद्ध सिद्धांत पद्धति (अध्याय - 2) पिण्ड विचार


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