पंचमहाभूतों (आकाश , वायु , अग्नि , जल तथा पृथ्वी) में जल तत्व दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है जिसके शरीर में सम अवस्था (संतुलित अवस्था) में बना रहना अत्यन्त अनिवार्य है। जब तक यह तत्व समअवस्था में रहता है तब तक शरीर स्वस्थ बना रहता है तथा इस तत्व के विकृत होने पर भिन्न भिन्न रोग पैदा होते हैं। कटि स्नान- तीव्र रोगों में स्नान जल्दी जल्दी और कई बार तथा जीर्ण रोगों में 1-2 बार ही देना चाहिए। कटि स्नान से सभी रोगों में लाभ पहुँचता है कटि स्नान से पेड्टू की बड़ी हुई गर्मी कम होती है। इस समान से आँतों में रक्त का संचार बढ़ जाता है जिससे वहाँ जमा मल शरीर से बाहर होने में मदद मिलती है। कटि स्नान पेट को साफ करने के साथ साथ एक यकृत तिलल्ली एवं आंतों के रस स्राव को भी बढ़ाता है। जिससे पाचन शक्ति में वृद्धि होती है। ज्वर, सिरदर्द, भू अवरूढता, कब्ज गैस, बवासीर, पीलिया, मदाग्नि, आंतों की सडान, पेट की गर्मी, अजीर्ण तथा उदर सम्बन्धी रोगों में बहुत ही उपयोगी है। कटि स्नान के लिये सामग्री- कटि स्नान टब, छोटा तौलिया। (अ) गर्म कटि स्नान- पानी का तापमान शरीर के तापमान से कुछ अधिक सहने योग्य अर्थात 100-104 डिग