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कटि स्नान | रीठ स्नान | जल चिकित्सा | प्राकृतिक चिकित्सा

 पंचमहाभूतों (आकाश , वायु , अग्नि , जल तथा पृथ्वी) में जल तत्व दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है जिसके शरीर में सम अवस्था (संतुलित अवस्था) में बना रहना अत्यन्त अनिवार्य है। जब तक यह तत्व समअवस्था में रहता है तब तक शरीर स्वस्थ बना रहता है तथा इस तत्व के विकृत होने पर भिन्न भिन्न रोग पैदा होते हैं। कटि स्नान-   तीव्र रोगों में स्नान जल्दी जल्दी और कई बार तथा जीर्ण रोगों में 1-2 बार ही देना चाहिए। कटि स्नान से सभी रोगों में लाभ पहुँचता है कटि स्नान से पेड्टू की बड़ी हुई गर्मी कम होती है। इस समान से आँतों में रक्त का संचार बढ़ जाता है जिससे वहाँ जमा मल शरीर से बाहर होने में मदद मिलती है। कटि स्नान पेट को साफ करने के साथ साथ एक यकृत तिलल्ली एवं आंतों के रस स्राव को भी बढ़ाता है। जिससे पाचन शक्ति में वृद्धि होती है। ज्वर, सिरदर्द, भू अवरूढता, कब्ज गैस, बवासीर, पीलिया, मदाग्नि, आंतों की सडान, पेट की गर्मी, अजीर्ण तथा उदर सम्बन्धी रोगों में बहुत ही उपयोगी है। कटि स्नान के लिये सामग्री- कटि स्नान टब, छोटा तौलिया। (अ) गर्म कटि स्नान- पानी का तापमान शरीर के तापमान से कुछ अधिक सहने योग्य अर्थात 100-104 डिग

जल चिकित्सा की अवधारणा, गुण, प्रभाव, जल चिकित्सा में प्रयुक्त जल का उपयुक्त तापमान

  हमारे शरीर का निर्माण करने वाले पंच तत्वों में जल तत्व दूसरा प्रमुख तत्व है जिससे शरीर का लगभग 70 प्रतिशत भाग बनता है। इस जल को जीवन का पर्यायवाची मानकर जल ही जीवन है की लोकोक्ति समाज में प्रचलित है। शरीर में इस जल तत्व की सम अवस्था स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है क् ‍ योंकि - शरीर में इस जल तत्व की कमी होने पर भिन् ‍ न - भिन् ‍ न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। इस जल तत्व का चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत अधिक महत्व है तथा जल द्वारा चिकित्सा " जल चिकित्सा " सम्पूर्ण विश्व में एक विशिष्ट स्थान बनाए हैं। जल चिकित्सा आज बहुत बडे रुप में विकसित हो गयी है।   जल का प्रयोग एक महाऔषधी के रुप में प्रयोग किया जाता है। जल चिकित्सा की अवधारणा - प्रकृति ने पृथ्वी पर 3 चौथाई जल ही जल दिया है। शरीर के कुल वजन का 70 प्रतिशत भाग जल ही है। इसी से आप समझ सकते है कि जल तत्व कितना आवश्यक है। जल प्राणियों के जीवन का आधार है। जल जीवन के

जल तत्व का शरीर पर प्रभाव व महत्व

  जल तत्व का शरीर पर प्रभाव व महत्व-     Effect and importance of water element on the body- हमारे शरीर का 70 प्रतिशत भाग पानी से भरा हुआ है तथा इसकी पूर्ति भोजन में मुख्यतः कुछ सब्जियों , फलो से आती है। इनमें भी दो प्रकार के भेद हैं- 1. ऐसी सप्जियाँ जो जमीम के ऊपर होती है- जैसे- लौकी, परवल, तोरई, टिण्डा, गोभी आदि। इममें जल तत्व अधिक होता है और इनमे शरीर से मल निकालने को शक्ति भी अधिक होती है। 2 आलू, शकरकंद आदि कंदमूल जिनमे जल तत्व कम तथा पृथ्वी तत्व अधिक होता है ये कंदमूल उपर्युक्त सब्जियों की अपेक्ष अधिक गारिष्ठ होेते हैं। पंच महाभूतों में चौथा स्थान जल का है जल हमारे जीवन में बहुत ही मह्त्वपूर्ण भूमिका रखता हैं। जल के कारण ही हम सभी स्वाद का अनुभव कर पाते हैं जैसे मीठा, खट्टा, कड़वा, तीखा, कसैला तथा नमकीन। पानी हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। हमारे शरीर की रचना के अनुसार भी इसका महत्व है हमारे शरीर का 2/३ भाग केवल जल ही होता है। इस तत्व के द्वारा ही हम अपने शरीर के आन्तरिक व बाहय अंगों को शुद्ध व स्वच्छ रख पाते हैं जल में  विजातीय द्रवों व अन्य विषों को अपने में घोलने तथा उन्हें पे

अग्नि तत्व का शरीर पर प्रभाव व महत्व

अग्नि तत्व का शरीर पर प्रभाव व महत्व :- Effect and importance of fire element on body - फलों के द्वारा अग्नि तत्व विशेष रूप से हमें प्राप्त होता है। फलों में जल तत्व की भी भरपूर मात्रा होती है। फल सूर्य की गरमी में पकते हैं जब हम धूप लेते हैं या सूर्य को गरमी से पके हुए फल खाते हैं तो शरीर के अन्दर अग्नि तत्व का समावेश होता है। फल भी दो प्रकार के होते हैं (अ) रसदार- यह शरीर को शुद्ध करने में अधिक सहायक होते हैं तथा सुपाच्य होते हैं। (ब) गूदेदार- इनमें पोषक तत्व अपेक्षाकृत अधिक होते हैं। ये अधिक गरिष्ठ माने जाते हैं। दोनों ही प्रकार के फल पृथ्वी और जल तत्व वाले भोज्य पदार्थों की अपेक्षा अधिक सुपाच्य होते हैं। इन्हें बिना पकाये कच्चा ही खाना चाहिए जैसे-खीरा, ककड़ी, गाजर, टमाटर इत्यादि। वायु तत्व के बाद अग्नि तत्व का आगमन होता है, जो पंच महाभूत का एक अंग है। इसके अभाव में प्राणी, पशु पक्षी एवं वनस्पति वर्ग आदि का जीवन असम्भव है। क्योंकि इसके अभाव में जीवन को उर्जा, उचित शक्ति आदि का मिलना असम्भव है। इस तत्व के अभाव में पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति और पृथ्वी की उर्वरक शक्ति नहीं बढ़ सकती। स

वायु तत्व का मानव शरीर पर प्रभाव व महत्व

पंचतत्वों का मानव शरीर पर प्रभाव व महत्व 1. आकाश तत्व का मानव शरीर पर प्रभाव व महत्व 2. वायु तत्व का मानव शरीर पर प्रभाव व महत्व-   Effect and importance of air element on human body- पंच महाभूतों में आकाश तत्व के बाद वायु का स्थान है आकाश तत्व की प्राप्ति होते ही वायु तत्व स्वयं उत्पन्न हो जाता है। यह अन्य तत्वों की उत्पत्ति करने वाला भी है। वायु तत्व के बाद अग्नि, जल और पृथ्वी तत्व उत्पन्न होते हैं और विपरीत क्रम से यह तत्व वापस वायु में ही मिलकर लुप्त हो जाते हैं। वैसे तो मनुष्य के जीवन में पांचों तत्व महत्वपूर्ण हैं परन्तु वायु तत्व अपने आप में महत्वपूर्ण तत्व है क्योंकि अन्न, जल, धूप के बिना मनुष्य कुछ दिन जीवित रह सकता है पर वायु के अभाव में कुछ क्षण में ही दम घुटने लगता है। अतः यह कहा जा सकता है कि वायु ही ज़ीवन है। वायु तत्व हमें जीवन, शक्ति एवं स्फूर्ति प्रदान करता है। इसलिए वायु का पूर्ण लाभ उठाने के लिए उसके शुद्ध रूप को ग्रहण करना जरूर हो जाता है परन्तु आजकल के दूषित वातावरण में यह बहुत ही कठिन है। आये दिन अनेकों प्रकार के रोग और विशेष कर कैंसर आदि रोगो से लोग तीव्र गति से

पंचतत्वों का मानव शरीर पर प्रभाव व महत्व

पंचतत्वों का मानव शरीर पर प्रभाव व महत्व Effect and importance of Panchatatva on human body छिती जल पावक गगन समीरा, पंचतत्व रचित अधम सरीरा।। अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से हमारा (भौतिक) शरीर बना है। इनमें केवल चार ही तत्व पृथ्वी, जल अग्नि और वायु हमारे भोजन की कोटि में आते हैं। रस, रक्त, मांस, भेद, अस्थि, मज्जा, एवं शुक्र इन सात धातुओं से मिलकर बने शरीर को हम देह कहते हैं। या स्थूल शरीर कहते हैं। आकाश, वायु, अग्नि जल और पृथ्वी ये सूक्ष्म भूत हैं। ये सूक्ष्म महाभूत मिलकर ही हमारे शरीर का निर्माण करते हैं ये पाँच तत्व जब प्रकृति में अलग रहते हैं तो सूक्ष्म होने के नाते अति शक्तिशाली होते हैं परन्तु जब वह स्थूल हो जाते हैं तो अपेक्षाकृत कम शक्तिशाली होते हैं। प्रकृति एवं हम में समान तत्व होने पर भी प्राकृतिक हमसे कई ज्यादा शक्तिशाली होती है। अतः हमें प्राकृति एवं उसमें पाए जाने वाले तत्वों में सामंजस्य स्थापित करना आना चाहिए तभी हम अपने अन्दर अधिक शक्ति का विकास कर पायेंगे।   आकाश तत्व का मानव शरीर पर प्रभाव व महत्व:- Effect and importance of sky element on human body- यह