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"चक्र " - मानव शरीर में वर्णित शक्ति केन्द्र

7 Chakras in Human Body हमारे शरीर में प्राण ऊर्जा का सूक्ष्म प्रवाह प्रत्येक नाड़ी के एक निश्चित मार्ग द्वारा होता है। और एक विशिष्ट बिन्दु पर इसका संगम होता है। यह बिन्दु प्राण अथवा आत्मिक शक्ति का केन्द्र होते है। योग में इन्हें चक्र कहा जाता है। चक्र हमारे शरीर में ऊर्जा के परिपथ का निर्माण करते हैं। यह परिपथ मेरूदण्ड में होता है। चक्र उच्च तलों से ऊर्जा को ग्रहण करते है तथा उसका वितरण मन और शरीर को करते है। 'चक्र' शब्द का अर्थ-  'चक्र' का शाब्दिक अर्थ पहिया या वृत्त माना जाता है। किन्तु इस संस्कृत शब्द का यौगिक दृष्टि से अर्थ चक्रवात या भँवर से है। चक्र अतीन्द्रिय शक्ति केन्द्रों की ऐसी विशेष तरंगे हैं, जो वृत्ताकार रूप में गतिमान रहती हैं। इन तरंगों को अनुभव किया जा सकता है। हर चक्र की अपनी अलग तरंग होती है। अलग अलग चक्र की तरंगगति के अनुसार अलग अलग रंग को घूर्णनशील प्रकाश के रूप में इन्हें देखा जाता है। योगियों ने गहन ध्यान की स्थिति में चक्रों को विभिन्न दलों व रंगों वाले कमल पुष्प के रूप में देखा। इसीलिए योगशास्त्र में इन चक्रों को 'शरीर का कमल पुष्प” कहा ग...

नाड़ी - मानव शरीर में वर्णित नाड़ी

नाड़ी-     (Theory of the nadis in yoga) भारतीय चिन्तन में सत्य की खोज, मानव कल्याण और मोक्ष की प्राप्ति मुख्य लक्ष्य रहा है। मानव जीवन में ही व्यक्ति योग साधना कर मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। योग साधना का आधार मानव शरीर है। योगिक दृष्टि से मानव शरीर में नाड़ी, चक्र तथा कुण्डलिनी शक्ति योग साधना का आधार है। प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि मुनियों ने अपने ज्ञान द्वारा प्राणशक्ति का उत्थान किया तथा वे प्राणशक्ति को जाग्रत कर चेतना को विकसित किया करते थे। आज मानव ने अणु को भी तोड़कर परमाणु ऊर्जा हासिल कर ली है। ठीक इसी तरह अगर वह चाहे तो अपने भीतर छिपी ऊर्जा के विशाल भण्डार को जाग्रत कर अपने जीवन को उत्कृष्ट कर सकता है। हमारे ऋषि मुनि प्राचीन काल से ही यह कार्य यौगिक तकनीकों से किया करते थे, और ऊर्जा का उत्पादन बाह्य साधनों से न करके अपने शरीर और मन के भीतर ही किया करते थे।  जिस प्रकार ऊर्जा प्राप्त करने के लिए जल और वाष्प ऊर्जा केन्द्रों की प्रणाली व्यवस्थित की जाती है ऊपर से जल को गिराकर उसके दवाब के फलस्वरूप नीचे टरबाइन घूमती है, उससे उत्पन्न ताप की सहायता से विधुत...