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श्री अरविन्द का जीवन परिचय

श्री अरविन्द की जीवनी - श्री अरविन्द का जन्म कलकत्ता में 15 अगस्त 1872 ई. में हुआ था, इनकी माता का नाम स्वर्णलता और पिता का नाम श्री कृष्णधन घोष था। पिता एक सिविल सर्जन थे। श्रीकृष्णधन इंग्लैण्ड से एम.डी. की उपाधि प्राप्त किये हुए थे। बंगाली भाषा के सर्वमान्य साहित्यकार, मा्डर्न रिव्यू के नियमित लेखक तथा भारतीय राष्ट्रीयता के पुरोधा राजनारायण बोस श्री अरविन्द के नाना थे।  चार वर्ष की आयु से अरविन्द की प्रारम्भिक शिक्षा दार्जिलिंग के लारेन्टो कान्वेन्ट स्कूल से आरम्भ हुई। माना जाता है कि श्री अरविन्द बाल्यकाल से ही एक होनहार मेधावी छात्र थे। विद्यालय शिक्षा के पश्चात श्री अरविन्द कैम्ब्रिज के किंग्स कालेज गये।  यहां पर अपनी पढाई पूर्ण करने पर 14 वर्ष के पश्चात श्री अरविन्द ने भारत आकर बड़ौदा के महाराज के यहां भूमि व्यवस्था तथा राजस्व विभाग में कार्य किया। इसके बाद बडौदा के ही एक कालेज में अंग्रेजी के प्राध्यापक नियुक्त हुए और इसी कालेज के प्रधानाचार्य के पद पर प्रोन्नत हुए। श्री अरविन्द अध्यापन के कार्य के साथ साथ “वन्देमातरम' पत्र के सम्पादकीय भी लिखते थे। श्री अरविन्द की विद्वत्ता

स्वामी विवेकानन्द का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानन्द का नाम भारतीय नवजागरण के आन्दोलनों के सूत्रधारों में प्रमुख रूप से लिया जाता है। उन्होंने केवल भारत ही नहीं बल्कि विदेशों तक भारतीय आध्यात्मिकता एवं संस्कृति का प्रचार प्रसार किया। उन्होंने अपने गुरु से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर इसे आध्यात्मिक साधना के माध्यम से धर्म जगत में एक नया रूप प्रदान किया। उन्होंने लोगों को संदेश दिया और बताया कि मनुष्य संसार में सबसे ऊपर का प्राणी है। स्वामी विवेकानन्द ने विश्व बन्धुत्व व मानव सेवा को जन जन तक पहुँचा इसे मुक्ति का मार्ग बताया। स्वामी विवेकानन्द ने परमहंस के उस सिद्धान्त को सर्वत्र प्रचारित किया जिसमें कहा गया है ”'सर्वधर्म समन्वय'”। वेद का प्रथम सूत्र है “नर नारायण की सेवा” । समाज की उन्नति और कल्याण के लिए सबसे अधिक आवश्यक है कि देशवासी मनुष्य बनें वे हमेशा यह प्रार्थना करते थे कि "हे ईश्वर! मेरे देश के निवासियों को मनुष्य बनाओ। स्वामी विवेकानन्द के अनुसार ”शरीर और आत्मा मिलकर मनुष्य बनते हैं। शरीर तो आत्मा का मन्दिर है। सुन्दर मन्दिर में सुन्दर विग्रह के रहने पर 'सोने पर सुहागा' होता है।' इसलिए श